Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगद्वारसूत्रे अगन्तगुगानि सर्वजीववर्गस्य अनन्तभागे। कियन्ति भदन्त ! कार्मणशरीराणि प्रजातानि ? गौतम ! कार्मकशरीराणि द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च । यथा तैनसशरीराणि तथा कार्मकशरीराण्यपि भणितव्यानि ॥सू०२१२॥ लोकप्रदेश राशिपरिमित हैं । (दव्य भो सिद्धेहिं अणतगुणा, सव्वजीवाणं अणंतभागूगा) द्रव्य की अपेक्षा बद्ध तैजस शरीर सिद्ध भगवान् से अनंतगुणे और सर्वजीवों की अपेक्षा से अनन्त भाग न्यून हैं। (तस्य गं जे ते मुक्केल्लया तेणं अणंता) वहां जितने मुक्त जीव हैं वे अनन्त हैं, (अणंताहिं उस्सप्पिणिमोस्सप्पिणिहिं अबहीरति कालो) कालकी अपेक्षा उनके अपहरण करने में अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणीकाल निकल जाता है । (खेत्तओ अणंता लोगा) क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तलोकराशि प्रमाण हैं। (व्वमोसव्वजीवेहि अणंतगुणा सव्वजीववग्गस्स अणंतभागे) द्रव्य से वे सब जीवों से अनन्तगुणे और समस्त जीववर्ग के अनन्त भोगवर्ती होते होते हैं। अब गौतम कामर्ण शरीर के विषय में पूछते है- (केवइयाणं भंते कम्मगसरीरा पण्णत्ता) हे भदन्त ! कार्मण शरीर कितने कहे गये हैं ? उत्तर में भगवान् फरमाते हैं। (गोयमा कम्मयसरीरा दुविहा पण्णता) हे गौतम! बद्ध और मुक्तके भेद से कार्मण शरीर दो प्रकार के होते हैं । (जहा तेयगसरीरा तहा कम्मग सिद्धेहि अणंतगुणा सव्व जीवाणं अणंतभागूणा) द्रव्यनी अपेक्षा सर तसशरीर સિદ્ધ ભગવાનથી અનંતગણ અને સર્વ જાની અપેક્ષાએ અનંત ભાગ ન્યૂન ७. 'तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया तेणं अणंता' त्या २८॥ भुत छे, ते मनात छ. 'अणंताहि उस्सपिणिोसप्पिणिहिं अवहीरंति कालो' पनि भये. ક્ષાએ તેને અપહરણ કરવામાં અનંત ઉત્સપિ અને અનંત અવસર્પિણી सनीsी जय छे. 'खेत्तओ अणतो क्षेत्री अपेक्षा सनत राशि प्रभार य छे. 'व्वओ सव्वजीवेहिं अणंतगुणा सव्वजीववग्गस्य अणंत भागे' द्रव्यथा तमा मा वाथी मानत! मन सघा वना અનંત ભાગવતિ હોય છે. व गौतमपाभी मर शरीरना
प्रभुने पूछे छे " केव इया ण भंते ! कम्मगसरीरा पण्णत्ता' सन् ! म शरीर टीરના કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે
3-'गोयमा ! कम्मयसरीरा दुविहा पण्णचा ' ३ मौतम! म शरीर
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