Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१२ ओघतो वैक्रियादिशरीरसंख्यानिरूपणम् १०५ जीवसंख्यकानि बोध्यानि । तथा-मुक्तानि तैजसशरीराणि अनन्तानि सन्ति । कालत एतानि अनन्तामुत्सपिण्यवसपिणीषु यावन्तः समया भवन्ति, तावत्संख्यकानि बोध्यानि । क्षेत्रता-अनन्तलोकपदेशराशितुल्यानि । द्रव्यतश्व-सर्वजीवेभ्यो. ऽनन्तगुणानि सर्वजीववर्गस्य अनन्तभागवर्तीनि बोध्यानि । जीवराशिनव जीवराशिर्गुणितो जीववर्ग इत्युच्यते । जीववर्गापेक्षया एतानि मुक्तशरीराणि अनन्तभागवर्तीनि भवन्तीत्यर्थः । अत्रेदं बोध्यम्-सर्वजीवाः सद्भावतोऽनन्ता अपि न्यून है, ऐसा कहो एक ही जैसा कथन का प्रकार है। इस प्रकार के कथन से यही सिद्ध होता है कि-'ये बद्ध तैजस सर्व संसारी जीवों की जितनी संख्या है, उस संख्या के बराबर है। समस्त जीवराशि की संख्या के बराबर नहीं । (तस्थ णं जेते मुक्केल्लया तेणं अणंताहिं उस्सप्पिणी ओसपिणीहि अवहीरंति कालओ) तथा जो मुक्त तेजस शरीर हैं वे सामान्य से अनन्त है। काल की अपेक्षा भी अनन्त है अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीकालों में जितने समय हैं, उन समयों के बराबर है । (खेत्तमो अणंता लोगा) क्षेत्र की अपेक्षा मुक्त तैजस शरीर अनन्तलोक प्रमाण हैं । 'दघओ सम्धजीवेहि अणतगुणा, सव्धजीवगास्स अणंतभागे) तथा द्रव्य की अपेक्षा मुक्त तेजस शरीर सर्व जीवों से अनन्तगुणे हैं अथवा सर्वजीववर्ग के अनन्तवें भाग प्रमाण है । जीवराशि से जीवराशि का गुणा करने पर जो राशिउत्पन्न होती है, वह जीव वर्ग' कहलाता है । इस जीवधर्म की अपेक्षा से मुक्त तैजस शरीर अनन्त भागवर्ती होते हैं। इस प्रकार એક જે જ કથનને પ્રકાર છે. આ જાતના કથનથી એજ સિદ્ધ થાય છે. કે આ બદ્ધ તેજસ સર્વ સંસારી જીની જેટલી સંખ્યા છે, તે સંખ્યાની બરાબર છે. સમસ્ત જીવરાશીની સંખ્યાની બરાબર નહીં (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता. अणंताहिं उत्सप्पिणी भोसप्णिीहिं अवहोरंति कालओ) मा २ भुत तस शरी। छे ते सामा. પની અપેક્ષા અનંત છે. કાલની અપેક્ષા પણ અનંત છે. અનંત ઉત્સપિણી અને અવસર્પિણ કાલમાં જેટલા સમચા છે, તે સમયની બરાબર છે. (खेत्तओ अणंता लोगा) क्षेत्रनी अपेक्षा भुत तस शरी। मन als प्रभाय छे. (दव्वओ सव्वजोवेहिं अणंतगुणा, सव्वजीववगरस अणंतभागे) તેમજ દ્રવ્યની અપેક્ષા મુકત તેજસ શરીર સવજીથી અનંતગણું છે અથવા સર્વજીવ વર્ગના અનંતમાં ભાગ પ્રમાણ છે. જીવ રાશિથી જીવરાશિ ગુણિત કરવાથી જે શશિ ઉત્પન્ન થાય છે, તે “જીવવગ” કહેવાય છે. આ જીવવર્ગની અપેક્ષાએ આ મુકત તેજસશરીર અનંત ભાગવર્તી હોય છે. આ કથનને આ રીતે
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