Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मध्यम
उपरितन
मध्यम अधस्तन
मध्यम
उपरितन
उपरितन अधस्तन
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०७ असुरकुमारादीनामायुः स्थितिनिरूपणम् ३५१
अधस्तन अधस्तन ग्रैवेयक २२ सागरोपम
२३ सागरोपम
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मध्यम
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उपरितन विजय, वैजयंत,
जयंत अपराजित सर्वार्थसिद्ध
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મધ્યમ અસ્તન
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મધ્યમ
ઉપરિતન
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મધ્યમ
ઉપરિતન
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ઉપરિતન અધસ્તન
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विनय, वैभ्यत
અધતન અધસ્તન ગ્રૂવેયક ૨૨
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જય'ત, અપરાજિત
સર્વાર્થ સિદ્ધ
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મધ્યમ
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उपरितन,, ३०
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इसमें जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर नहीं है। यहां तो ३३ सागरोपम की स्थिति है । अपर्याप्त पृथिवी आदिकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहुर्त की ही है। इसके बाद या तो वे पर्याप्तक होजाते हैं या मरण कर जाते हैं। व्यन्तरदेवों से लेकर वैमानिक देवों
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આમાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિમાં તફાવત નથી सहीं तो 33 સાગરોપમ જેટલી સ્થિતિ છે. અપર્યાપ્ત પૃથિવી વગેરેના જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ અન્તર્મુહૂત્તની છે. એના પછી કાંા તેઓ પર્યાપ્તક થઈ જાય છે.
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