Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे अथ कालप्रमाण निरूपयति.. मूलम्-से किं तं कालप्पमाणे?, कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पएलनिफण्णे य विभागनिप्फपणे य। से किं तं पएसनिप्फपणे ?, पएसनिप्फण्णे एगसमयटिइए दुसमयटिइए तिसमयदिइए, जाब दससमयदिइए असंखिजसमयटिइए से तं पएसनिप्फण्णे।से किं तं विभागनिप्फण्णे ? विभागानिफण्णे. समयावलियमुहुत्ता, दिवसअहोरत्तपक्खमासा य । संवच्छर जुगपलिया, सागरओसप्पिपरिया ॥१॥सू० २०१॥
छाया-अथ किं तत् कालपमागम् ? कालप्रमाणं द्विविध प्रज्ञप्त, तद्ययाप्रदेशनिष्पन्नं च विभागनिष्यन्नं च । अथ किं तत् प्रदेशनिष्पन्नम् ? प्रदेशनिष्पक्षेत्र प्रमाण की प्ररूपणा की गई जाननी चाहिए, यह सूचित करने के लिये कहते हैं-यह सब क्षेत्र प्रमाण है सूत्र ॥२०॥
अब सूत्रकार कालप्रमाण का निरूपण करते हैंसे कितं कालप्पमाणे' इत्यादि। शब्दार्थ-(से कितं कालप्रमाणे ?) हे भदंत ! कालप्रमाण क्या है?
उत्तर--(कालपपमाणे दुबिहे पत्ते) बह कालपमाण दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) वे दो प्रकार उसके ये हैं (पएसनिप्फण्णे य विभागनिष्फण्णेय) एक प्रदेश निष्पन्न काल प्रमाण और दूसरा विभाग निष्पन्न कालप्रमाण । (से किं तं पएसनिफण्णे ?) प्रदेश निष्पन्नकाल. प्रमाण का क्या स्वरूप है ? પ્રમાણની પ્રરૂપણ થયેલી જાણવી જઈ એ આ સૂચિત કરવા માટે કહે છેઆ સંપૂર્ણ ક્ષેત્ર પ્રમાણ છે. સૂ૦૨૦૦
હવે સૂત્રકાર કલપ્રમાણુનું નિરૂપણ કરે છે– "से किं तं कालप्पमाणे" त्यादि। शहाथ-(से किं तं कालप्रमाणे ?) मत ! प्रमाण शु छ १ ।
उत्तर-(कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते) ते सप्रमाण मे प्रा२नु वामां मा०यु छ. (तंजहा) ते २ मा प्रमाणे छे. (पएसनिष्फण्णे य विभाग. निकण्णे य) में प्रदेश नि०पन्न प्रभाय मने भी२ विमानसप्रमाण (से कितं पएसनिष्फग्गे ?) प्रदेश निश्पन्न सप्रमाणुनु स्१३५ पुंछ ?
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