Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र२०४ पल्योपमादीनां औपमिकप्रमाणनिरूपणम् २६७ गृहीतानि, अत्र तु एकै वालाग्रमसंख्ये यखण्डीकृतं गृह्यते इति भावः । एवं सत्येकैकखण्डस्य यन्मानं भवति तनिरूपयामाह-वानि खलु वालाग्रखण्डानि दृष्टयागाहनातः असंख्येयभागमात्राणि । दृष्टिः चक्षुद्वारोत्पन्नदर्शनरूया, साऽवगाहते-परिच्छेदद्वारेण प्रवतेते यत्र वस्तुनि तदेव वस्तु दृष्टयवगाहना मोच्यते । सा चेह वालामखण्डरूमा तदपेक्षयाऽसंख्येय मागवत्ति प्रत्येकं वालाप्रखण्डं बोध्यकोडीण) इस पल्य को एक दिन दो दिन तीन दिन यावत् सात दिन तक के पालायों से खूब ठसाठस-लबालय भर देना चाहिये । (तत्थ णं एगमेगे बालग्गे असंवि नाई खंडाई कज्जइ) इन में जो एक २ वालाग्र है, उसको केवली की धुद्धि की कल्पना से असंख्यातर खंड करना चाहिये। (ते गं वालग्गखंडा दिही ओगाहणाओ असंखेज्जहभागमेत्ता मुहमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा) ये प्रत्येक बालाग्रखंड दृष्यवगाहना की अपेक्षो से असंख्यातवें भाग मात्र हैं। चक्षुद्वारा उत्पन्न जो दर्शन रूप दृष्टि है, वह दृष्टि जिस वस्तु में परिच्छेद करने के लिये प्रवृत्त होती है, वही वस्तु दृट्यवगाहना रूप से यहां कही गई है । अर्थात् जो वस्तु चक्षुर्दर्शन का विषय होती है वही वस्तु दृटयवगाहना है । इस प्रकार ये प्रत्येक बालाग्रखंड उसके असं. ख्येय भागवर्ती हैं । ऐसा अर्थ जानना चाहिये । तात्पर्य कहने का यह है कि जिस पुद्गलद्रव्य को विशुद्ध चक्षुर्दर्शनवाला छमस्थ प्राणी देखता है, उस दृष्ट्यवगाहना रूप वस्तु के असंख्यातवें भाग मात्र वे प्रत्येक દિવસ, બે દિવસ, ત્રણ દિવસ યાવંત સાત દિવસ સુધીના બાલાથોથી ખૂબ iसी-सीन ली वामां आवे (तत्थ ण एगमेगे बालग्गे असंखिज्जाई खंडाइं कज्जइ) मेमरे से- मलाछे, तना बक्षीनी मुद्धिनी पना १९ असभ्यात-मसात ५ ४२१ स. (तेण वालगाखंडा दिदी ओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्त्र पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा) मा ४३१ ६२, माया म १-याइनानी अपेक्षा અસંખ્યાતમાં ભાગ માત્ર છે. ચક્ષુ વડે ઉત્પન્ન જે દર્શન રૂપ દૃષ્ટિ છે, તે દષ્ટિ જે વસ્તુમાં પરિચછેદ કરવામાં પ્રવૃત્ત હોય છે, તેજ વસ્તુ દવાહના રૂપથી અહીં કહેવામાં આવી છે એટલે કે જે વરતુ ચક્ષુદર્શનને વિષય હોય છે તેજ વસ્તુ દષ્ટ્રયવગાહના છે આ પ્રમાણે આ દરેકે દરેક બાલાગખંડ તેના અસંખ્યય ભાગવત છે. આ અર્થ જાણું જોઈએ તાત્પર્ય એ પ્રમાણે છે કે પુગલ દ્રવ્યને વિશુદ્ધ ચક્ષુદશનવાળું જુએ છે, તે દેવગાહના રૂ૫ વસ્તુના અસંખ્યામાં ભાગ માત્ર તે દરેકેદરેક ખંડી
For Private And Personal Use Only