Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०० प्रमाणाङ्गुलनिरूपणम् विष्कम्भा भवति । काकिणी रत्नस्य द्वादशाप्यस्रय एकैकोत्सेधाशुलप्रमाणा भवन्तीति भावः । काकिणीरत्नं हि समचतुखं भवति, अतोऽस्यायमो विष्कम्भश्च प्रत्येकमुसेधागुलपमाणो बोध्यः । ऊ:कृता सती या कोटिरायामवती भवति सैव तिर्यकृता सती विष्कम्भरती भवति, अत आयाम विष्कम्भयोरेकतरनिर्णयेऽप्यपरोऽपि निर्णीत एवेति सूत्रे विष्कम्भ एवोपात्तः तेन आयामोऽपि स्वत एव बोध्यः । तदेवं काकिणीरत्नमुत्से धाङ्गलप्रमाणमुक्तम् । तदेकैककोटिगत मुत्से धाङ्गुलं श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अङ्गुिलम् । तत् सहस्रगुणं प्रमाके जैसा होता है । अर्थात् यह समचतुरस्त्र होता है। (तस्स णं एममेगा कोडी उम्से हंगुलविक्व भा) इस काकिणी रत्न की एक कोटी उत्सेधाङ्गुल प्रमाण चौड़ी होती है। तात्पर्य कहने का पह है कि काकिणी प्रस्न की जो १२ कोटियां हैं, वे एक उत्सेबोङ्गुल प्रमाण होती है । क्योंकि काकिणीरत्न लमचतुरन होना है,, इसलिये हमका आयामलम्बाई, और विष्कंभ-चौडाई, ये प्रत्येक उत्सेधांगुल प्रमाण होते हैं, ऐसा जानना चाहिये। ऊँची करने पर जो कोटि आयामवतीलंबी होती है, वही तिरछी करने पर विष्भवती-चौड़ी-हो जाती है। इसलिये आयाम और विष्कंभ इनमें से किसी एक का निर्णय हो जाने पर दूसरा भी निर्णित हो जाता है, इसी ख्याल से मूत्र. कारने सूत्र में विष्कम पद का ही पाठ रखा है। क्योंकि इसी से आयाम का बोध हो जाता है इस प्रकार काकिणीरत्न उत्सेधांगुल प्रमाण होता है, यह बात सूत्रकारने यज्ञ कही है। (तं ममणस्सडाय छे सेट है । समयतुर डाय . (तस्स णं एगमेगा कोडी उस्सेहंगुउविक्खंभा) in size २लनी से से ट सेवाशुस प्रभार પહેળી હોય છે તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે કાકિ રત્નને જે ૧૨ ખૂણાઓ છે તે એક ઉધાંગુલ પ્રમાણ છે. કેમકે કાકિ રત્ન સમચતુરસ્ય હોય છે, मेटसा भाटे भान भायाम (बा). मने १० (पा ) २४ से. ધાંગુલ પ્રમાણ હોય છે, આમ જાણવું જોઈએ ઊંચી કરવાથી જે કેટિ मायावती--(Aisी) होय छे, ते aiसी ४२वाथी विभवती-पढ़ी -था જાય છે. એટલા માટે અયામ અને વિષ્કભ આમાં ગમે તે એકની જાણ થઈ જાય તે તેના પરથી બીજા વિશે પણ જ્ઞાન થઈ જાય છે એટલા માટે જ સૂત્રકારે સૂત્રમાં માત્ર વિષ્કભ પદનું જ કથન કર્યું છે. કેમકે આનાથી જ આયામનું જ્ઞાન થઈ જાય છે. આ પ્રમાણે કાકિયું રત્ન ઉત્સાંગલ प्रभा याय छे, मा पात सूत्ररे भी ही छ. (तं समणस भगवओ
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