Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे वालाग्रम् लिक्षा गृका यव इति । एनेषु पूर्वपूर्वापेक्षया उत्तरोत्तरमष्टगुणाधिकं बोध्यम् । अथ परमाणुस्वरूपनिरूपणाय माह-अथ कोऽसौ परमाणुः ? इति । उत्तरयति-परमाणुः सूक्ष्मव्यावहारिकेति द्विविधः । तत्र-मुक्ष्मः प्रकृतानुपयोगिस्वात् स्थाप्या अव्याख्येयः। तथा यो व्यावहारिकः परमाणुः स किल किद्भिः सूक्ष्मपुद्गले निष्पन्नो भवति ? इत्याह-
तमूक्ष्म व्यावहारिकमध्ये योऽसौ व्यावहारिकः परमाणुपुद्गलः, स खलु व्यावहारिकः परमाणुपुद्गलः अनन्तानन्तानां सूक्ष्मपुद्गलानां समुदयसमितिसमागमेन-समुदया:-समुदायाः-द्वयादिसमुदायात्मकानि वृन्दानि तेषां याः समितयो बहूनि मीलनानि तासां समागम संयोगःएकीभवनं वा तेन निष्पद्यते-निष्पन्नो भवति । अयं भावः-"कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरस वर्णगन्धो, द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥" रेणु बालाग्र, लिक्षा, यूक, यव ये क्रमशः उत्तरोत्तर अठगुने जानना चाहिये । (से किं तं परमाणू) हे भदन्त ! परमाणु क्या है ?
उत्तर-(परमाणू दुविहे पण्णत्ते) परमाणु दो प्रकार का कहा है । (तं जहा) जैसे (सुहमेय ववहारिए य) एक सूक्ष्म परमाणु दूसरा व्यवहारिक परमाणु (तत्थणं) इनमें (जे से सुहुमे से ठप्पे ) जो सूक्ष्म परमाणू है वह प्रकृत में अनुपयोगी होने से अव्याख्येय है । (तत्थणं जे से ववहारिए, से णं अणंताणताणं सुहुमपुग्गलाणं समुदयसमिइ समागमेणं ववहोरिए परमाणुपोगले निफ्फज्जइ) तथा वह जो व्यावहारिक परमाणु है, वह अनंतानंत सूक्षन परमाणुओं की समुदय समिति के समागम से-अनेक द्वयादि परमाणुओं के एकीभवन रूप संयो. गात्मक मिलन से उत्पन्न होता है । इसका तात्पर्य यह है कि जो पुद्गल ५४, ३१ मा मा अनु उत्तरोत्तर भाउ ! onjan से (से कि तं परमाणू) ९ मत ! ५२माए शु छ ?
उत्तर-(परमाणू दुविहे पण्णत्ते) ५१मा मे ५४.२ ४ामा माव्या छ. (तंजहा) भ (सुहुमे य ववहारिए य) मे सूक्ष्म ५२मा भने भान व्यावसा२ि४ ५२भा (तत्थणं) मामा (जे से सुहुमे से ठप्पे) २ सूक्ष्म ५२भार , ते प्रकृतमा अनु५०० पाथी भव्याभ्येय छे (तत्थणं जे से ववहारिए, से गं अर्थतार्ण सुहमपुग्गलाणं समुदयसमिइसमागमेणं ववहारिए परमाणु पोग्गले निफज्जइ) तेभ ने व्यापा२ि४ ५२मा छ, मनतात सूक्ष्म પરમાણુઓની સમુદાય સમિતિના સમાગમથી અનેક યાદિ પરમાણુઓના એકી ભવન રૂપ સંયોગાત્મક મિલનથી ઉત્પન્ન થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય આ
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