Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १९६ नैरयिकाणां शरीरावगाहनानिरूपणम् १.६११ है । (तस्थ णं जा उत्तरवे उब्विा सा जहण्जेणं अंगुलास मेखेज्जहभागं उक्को सेणं पणसणू दोन्नि रयणीओ वारस अंगुलाई) तथा जो उत्तर वैक्रियरूप अवगाहना है वह जघन्य की अपेक्षा अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण है, और उत्कृष्ट की अपेक्षा पन्द्रह धनुष, दो रहिन, १२ अंगुल प्रमाण हैं । ( सकरप्पहा पुढवीए णेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पणत्ता ) हे भदन्त ! शर्करा पृथिवी में नारकों की शरीरावगाहना कितनी होनी है ?
उत्तर - (गोमा ! दुविधा पण्णत्ता) हे गौतम! यह शरीरावगाहना हां दो प्रकार को कही गई है ( तं जहा ) वह इस प्रकार से हैं- (भवधारणिज्य उत्तरवेविया य) एक अवधारणीय दूसरी उत्तरविक्रिया । (तत्थ णं जा सा भववारणिज्जा, सा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जभाग, उफोलेणं पण्यरसपणू दुष्णि रयणीओ, वारस अंगुलाई ) इनमें जो भवधारणीय अवगाहना है वह जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट से १५ धनुष दो रत्नि एवं १२ अंगुल प्रमाण है । (तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहणेणं अंगुलस्स संखेज्जभागं उक्कोसेणं एकतीसं घणू एकरयणीय) उत्तर
गुल प्रभाष छे. (तत्थ णं जा उत्तरवेउच्त्रिया सा जइण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइ भागं उक्कोसेणं पण्णरसधणू दोणि रयणीओ बारस अंगुलाई) तेभन ने उत्तरવૈક્રિય રૂપ અવગ!હુના છે તે જઘન્યની અપેક્ષા અંગુલના સખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણ છે અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષા પદર ધનુષ, એ રત્નિ, ૧૨ અંશુલ પ્રમાણ छे. ( करपहा पुढवीए णेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगहणा पण्णत्ता) હે ભત! શર્કરા પૃથિવીમાં નારકની શીરાવગાડુના કેટલી છે ?
उत्तर- (गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता) हे गौतम! आा शरीरावगाडना त्यां मे अञ्जारनी Łडेवामां आवी छे (तंजहा) ते आा अमाशे छे. ( भवधारणिज्जा य उत्तरवे उब्विया य) भेड लवधारणीय भने मील उत्तरसैडिय (तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा, सा जहणेणं अंगुलरस असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पण्णरसघणूई दुण्णि रयणीओ, बारस अंगुलाई) समां ने अवधारणीय अवगाहना छे, ते જન્મથી અંશુલના અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ૧૫ धनुष मे रत्नि भने १२ अशुद्ध प्रमाणु छे. (तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहणणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं एकतीसं धणूई एक्करयणी य )
अ० २१
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