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ब्रह्मत्युपासीत, आत्मा वारे द्रष्टव्य इत्यादिनोदनवाक्यार्थत्वात् । “अयं हि परमो धमों यद् योगेनात्मदर्शनमिति" स्मृतेश्च । सृष्ट्या दिवाक्यानां त्वर्थवादत्वम् । प्रारोपापवाद विषय धर्मप्रतिपादकत्वेन विधेयोपासनाविषयस्तावकत्वात् । न च ज्ञानादीनामविधेयत्वं, प्रमाणवस्तुपरतंत्रत्वेनाकृतिसाध्यत्वादिति वाच्यम्, नहि सर्वात्मना असाध्यम्, प्रकारभेदस्त्वप्रयोजकः, सर्वस्यापि कारणेषु पुरुषव्यापृतिः तदत्र वृत्ति संपादने प्रमाण संपादने वा पुरुषकृति साध्यत्वम् । अन्यथा सिद्धान्तेऽपि मननादि शास्त्र वैफल्यापत्तेः, साधन प्रतिपादक श्रुति विरोधश्च, येनापि सर्व क्रिया फलत्वं निराकार्य तेनापि गुरूपसत्त्या दिना यतितव्यमेव ज्ञानार्थे, तस्माद् यत्रापि विध्यश्रवणं, तत्रापि विधि परिकल्प्य तत्रत्यानां तच्छेषत्वं कल्प्यमिति, नार्थोऽनया मीमांसया, अन्यथा विरोधोऽपि ।
धर्म की तरह, ब्रह्म विचार की गतार्थता भी नहीं है, अर्थात् वेद के अर्थ ज्ञान मात्र के लिए जैसे धर्म की जिज्ञासा होती है वैसे ब्रह्म जिज्ञासा नहीं होती, अपितु वेदार्थ ब्रह्म ज्ञान के लिए यह विचार किया जाता है । जैमिनि ने केवल धर्म विचार की ही प्रतिज्ञा की है, ब्रह्म विचार की नहीं (यदि ब्रह्म विचार की भी की होती तो वे "अथातो वेद जिज्ञासा" सूत्र बनाते)। यदि धर्म जिज्ञासा में ब्रह्म विचार की भी प्रतिज्ञा होती तो "चोदना लक्षणोथों धर्मः" इत्यादि से धर्म विचार की तरह ब्रह्म विचार की भी उपलब्धि होती। इस प्रकार की उपलब्धि न होने से निश्चित होता है कि ब्रह्म विचार की प्रतिज्ञा नहीं की गयी । और न जैमिनि की पूर्व मीमांसा के किसी अधिकरण में जगत कारण रूप से परमात्मा, प्रकृति या परमाणु के विषय में विचार ही किया गया है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि धर्म जिज्ञासा के अन्तर्गत ही ब्रह्म जिज्ञासा भी है। यदि ऐसा होता तो "अथातो धर्म जिज्ञासा" सूत्र से धर्म विचार की प्रतिज्ञा के लिए, नोदक वाक्य की अर्थधर्मता बतला कर सारे संदेहों का प्रमाणों सहित निराकरण किया गया होता [अर्थात् "चोदना लक्षणार्थों धर्मः" से लेकर "प्रात्मेत्येवोपासीत" इत्यादि वाक्यों की अर्थधर्मता बतलाकर उपपत्ति पूर्वक अर्थवाक्यों की प्रामाणिकता की शंका निराकृत की गयी होती] "प्रात्मेत्येवोपारीत, आत्मानरलोकमुपासीत, तद् ब्रह्मत्युपासीत, आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः" इत्यादि नोदनवाक्याथों से ब्रह्मज्ञान का भी धर्मत्व सिद्ध होता है । “योग के दारा आत्म दर्शन किया जाना ही परम धर्म है" इत्यादि स्मृति प्रमाण भी हैं। हमारे मत से तो जगत