________________
३०७
श्रुति विरोधं परिहरति । परस्पर विरोधे व्यवस्था वा बोध्यते । ननु 'यत्रास्य पुरुषस्य मृतस्याग्निर्वागप्येति वा तं प्राणः" इत्यादिना अग्न्यादिगतिः प्राणानां श्रूयते । न च ओषधीर्लोभानि वनस्पतीन् केशा इत्यत्र प्रत्यक्ष विरोधात् बाधितविषयेयं श्रुतिरिति वाच्यम् । आध्यात्म केन्द्रियमध्यपाताल्लोभकेशा अप्याध्यात्मिका एव ग्राह्याः यः कण्डूलावण्य प्रतीतिः, दृश्मानानितु गोलकस्थानानि । तस्मात्प्राणोत्क्रमणश्रुतिरग्न्यादिभावश्रुत्या बाध्यत इति चेन्न । भाक्तत्वात्, प्रकरण व्यतिरेकेणामुक्त विषये प्रवृक्ता भाक्ता भवति । “अथ हैनं जारत्कारब अतिभागः पप्रच्छ” इत्यत्र ग्रहनिरूपणानन्तरं मृत्यु पृष्ट्वा म्रियमाण प्रश्ने नामैव न जहात्यन्यज्जहातीति प्रतिज्ञाते, प्राणोत्क्रमण प्रश्ने नेतिप्रति वचने वागा दीनाभग्न्यादि भावानुवादः । ततो मंत्रणाज्जीवस्य ब्रह्मभावोऽव गम्यते, सामग्या गतत्वात् । "तो हयद्चतुरिति” कर्मप्रशंसा भिन्न प्रश्नोत्तरा ।उपयोवंचन विधानात् ब्रह्मविद्या च गोप्या उत्क्रमण श्रुति स्तु, “स यत्रायें शरीर आत्मा" इति ब्राह्मणे, जीवस्य "परलोक विहारार्थ निष्कामति' चक्षुषो मू!''वेत्यादिना प्राणानां विहार साधकानां निर्गमनमाह । अतोमुक्तामुक्त विषय भेदस्य व्यस्थापकस्य विद्यमानत्वादग्न्यादिभाव श्रुति !त्क्रमण श्रुति बाधिका । तस्मादन्यत्र सिद्धो धर्मोऽन्यत्रावस्था साम्याद् योज्यमानो भाक्तो भवति । अतः प्राणोत्क्रमणमस्ति । तस्मात् संपरिष्वक्तो गच्छतीति सिद्धम् ।
श्रुति की विभिन्नता का परिहार करते हैं। परस्पर विरोध में व्यवस्था देते हैं । “यत्रास्य पुरुषस्य मृतस्यग्निर्वागळति" इत्यादि में तो प्राणों की अग्न्यादि गति बतलाई गई. है ? इस पर कहते हैं कि “अजधियॊमानि" इत्यादि में तो प्रत्यक्ष विरोध है, इसलिए यह श्रुति बाधित कही जा सकती है ? वस्तुतः आध्यामिक इन्द्रियों के साथ वर्णन होने से लोम केश आदि भी आध्यात्मिक ही मानने चाहिए, लोक में लोम केश आदि से लावण्य की प्रतीति होती है इसलिए अध्यात्म में भी उनका वर्णन किया गया है इस लिए,प्राणोत्क्रमण श्रुति, अग्न्यादि भाव श्रुति से बाध्य है, ऐसा नहीं कह सकते अग्न्यादिभाव श्रुति भाक्त है। यह श्रुति, अभुक्त जीव का वर्णन कर रही है, प्रकरण से अलग है, इसलिए भाक्त है। "अथ है नं जारत्कारव" इत्यादि प्रश्न और निरूपण के बाद मृत्यु सबंधी प्रश्न करने के बाद, म्रियामाण संबंधी प्रश्न में कहा गया कि नाम ही नहीं छोड़ता और सब भी छोड़ देता है, ऐसी जानकारी हो जाने पर जब प्राणोत्क्रमण सबंधी प्रश्न किया गया तब उसमें नकारात्मक उत्तर देकर कहा कि वागादि का, अग्न्यादि भाव होता