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द्योतक है आपवाची नहीं है तो, प्रकरण के उपक्रम और उपसंहार में जो आप शब्द का स्पष्ट उल्लेख है उसकी श्रद्धा पद के साथ कैसे संगति होगी? इस पर कहते हैं कि जैसे कि "अर्वाग्विलश्च" इत्यादि में शिर आदि को चमस शब्द से परोक्षवाद रूप में कहा गया है वैसे ही यहाँ भी श्रद्धा और जल का शुद्धि हेतुक साम्य होने से जल के स्थान पर श्रद्धा शब्द का परोक्षवाद रूप से प्रयोग किया गया है। पुनः शंका होती है कि श्रद्धा पद को जल पूरक मान लेने से, ..श्रद्धां जह्वति तस्या आहतेः सोमो राजा संभवित" इत्यादि में जो श्रद्धा के परिणामरूप से सोम की अधिष्ठातृता कही गई है उससे विरुद्धता होगी ? इसका समाधान करते हैं कि “चन्द्रमा मनसो जात :" श्रुति मन और श्रद्धा की एकता का प्रतिपादन कर रही है इसलिए विरुद्धता का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर प्रश्न होता है कि प्रथम आहुति में तो जल का वर्णन है, उससे संलग्न होकर जीव जाता है ऐसा उल्लेख तो है नहीं, फिर जीवोत्पत्ति का प्रकरण कैसे कह सकते हैं ? इसका समाधानकरते हैं कि उस जल का जो श्रद्धा शब्द से प्रयोग किया गया है उसी से जीव की संलग्नता सिद्ध हो जाती है। श्रद्धा शब्द का प्रयोग जीव के लिए उपयुक्त ही है । जैसे कि कर्मकाण्ड में आय को श्रद्धा कहते हैं, वैसे ही लौकिक प्रयोग भी होता है । श्रत् शब्द का अर्थ निघण्टु में सत्य किया गया है, जीव सत्यरूप है उसे जो धारण करे उसे ही श्रद्धा कहते हैं (श्रत् सत्यं दधातीत श्रद्धा) श्रद्धा, जल के समान ही पवित्र है इसलिए जल के स्थान पर उसका जो प्रयोग किया गया वह औपचारिक नहीं है । उपक्रम और उपसंहार में तो स्पष्ट ही जल शब्द का प्रयोग है इसलिए मध्य में वर्ण्य श्रद्धा शब्द, जल वाची ही है यही मानना चाहिए उसका अन्यथा अर्थ करना ठीक नहीं है। श्रद्धा सहित किये गए संस्कार से ही, पदार्थों की शुद्धि होती है। इसलिए मन के स्थान पर पवित्रतावाची जल शब्द का प्रयोग किया गया है । “चन्द्रमा मनसो जातः" इत्यादि तो ईश्वरीय सृष्टि का वर्णन है । सकाम यज्ञ करने वाले को फलस्वरूप श्रद्धा प्राप्त होती है, यही बात श्रद्धा' शब्द के प्रयोग से दिखलाई गई है, कर्म में श्रद्धा करने से तो निष्काम भाव की सिद्धि होनी है। यो यच्छद्धः सा एव सः' इत्यादि गीतोक्त वाक्य में कर्ता को, स्पष्ट रूप से श्रद्धा का आश्रय बतलाया गया हैं। इससे सिद्ध होता है कि जल सुसंस्कृत होकर जीव नामधारी होता है। श्रद्धा का आश्रय तदनुरूप हो जाता है, इसी भाव से सर्वप्रथम श्रद्धा के स्थान पर जल शब्द का प्रयोग किया गया है।