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( ४७३ ) बतलाने वाली ऋचा परब्रह्म के ज्ञाता की बात को पुनः “सत्य ज्ञान “आदि से कहती है परब्रह्म का स्वरूप एक मात्र अनुभव से ही ज्ञेय हैं, शब्दादि से नहीं है। इस बात को बतलाने के लिये स्वयं उस तत्व का प्रतिपादन करते हुये भी अन्य-अन्य प्रकार से तत्व का विवेचन करती है । उक्त प्रसंग में ब्रह्म के साथ समस्त कामनाओं के उपभोग की बात एक ही वाक्य में कही गई है "सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति" इत्यादि । श्रुति भी पूर्वोक्त अर्थ की पुनरुक्ति कर रही है।
व्यतिरेकस्तभावावित्वान्न तूपलब्धिवत् । ३।३॥५४॥ .
ननु “ब्रह्म विदाप्नोति परम्" इति श्रुत्या अक्षर ब्रह्मविदः परब्रह्म प्राप्तिसच्यते । तत्रेतरसाधन सापेक्ष ब्रह्मज्ञानं परं प्रापयति, उत तन्निरपेक्षमिति ? भवति संशयः । अत्र श्रु तौ तन्मात्रोक्तरितरनिरपेक्षं एव तत्तथा इति पूर्वपक्षः। सिद्धान्तस्त्वेनं सति ज्ञानमार्गीयाणामपि पर प्राप्तिः स्यात् । सात्वनेकप्रमाणबाधितेति पूर्वमवोचाम् । किंच ज्ञान शेषभूतब्रह्मापेक्षया फलात्मकस्य परस्य मुख्यत्वातू "तदेषाअभ्युक्तेति" श्रुतिस्तदेव प्रतिपाद्यत्वेनाभिमुखीकृत्य ऋगुक्तेत्याह । तेन तत्र ब्रह्मपदं पुरुषोत्तमपरे ज्ञायते । तथा च गुहायां यद्याविभूत परमं व्योम पुरुषोत्तम गृहात्मकमक्षरात्मकं व्यापि वैकुण्ठं भवति तदातत्र भगवानाविर्भवतोति तत्प्राप्तिर्भवतीत्युच्यते । “यो वेद निहितं गुहायां परमेव्योमन्" इत्यनेन । तथा च ज्ञानिनां गुहासु परमव्योम्नों व्यतिरेक एव तत्र हेतुमद् भावाभावित्वादिति 1 "यमेवैषवृणुते' इति श्रुतेर्वरणाभावे भगवद् भावस्यासंभवाज्ज्ञानिना तथा वरणाभावाद् भगवद् विषयको भावो न भावीति तथेत्यर्थः । ___ "ब्रह्मविदाप्नोति परम्" श्रुति से अक्षरब्रह्मविद् की परब्रह्म प्राप्ति कही गई है । संशय होता है कि-इतर साधन सापेक्ष ब्रह्म ज्ञान, पर प्राप्ति कराता है, या निरपेक्ष ? श्रुति में तो केवल मात्र अक्षर ब्रह्म को हो चर्चा है, अत:निरपेक्ष ही समझ में आता है किन्तु सिद्धांत तो यही है कि-ज्ञानमार्गीय जीवों को भी पर प्राप्ति होती है । पूर्वपक्ष की बात तो अनेक प्रमाणों से कट जाती है। ऐसा पहिले दिखला भी चुके हैं । ज्ञान शेष भूत ब्रह्म की अपेक्षा, फलात्मक परब्रह्म मुख्य है इस बात को दिखलाने के लिये हो “तदेषा अभ्युक्ता" इत्यादि ऋचा प्रस्तुत की गई है । अतः उक्त प्रसंग में "ब्रह्म" पद पुरुषोत्तम परक ज्ञात होता है ।" यो वेद निहितं गुहायां परमेब्योमन्" इत्यादि श्रुति में दिखलाया गया है किः-गुहा में आविर्भूत परम व्योम पुरुषोत्तम गृहात्मक अक्षरा