Book Title: Shrimad Vallabh Vedanta
Author(s): Vallabhacharya
Publisher: Nimbarkacharya Pith Prayag

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Page 729
________________ ( ६४६ ) करणाशयदुखग्रहवादिनी विवादानवसरः।" इत्यादि-वाक्ये रचिन्त्यानन्तशक्तिमत्वेन भगवत्स्वरूपस्यैव परमफलत्वं प्रदर्श्यते । लौकिक युक्ति को यहां बाधक नहीं मानना चाहिये अपितु साधक ही मानना चाहिये । प्रत्यक्ष और अनुमान स्वरूप अति और स्मृति भी लौकिक युक्ति का जो निराकरण करती हैं वह अलौकिक भगवत् सम्बन्धी विषय में अन्यथाभाव का निषेधमात्र है। "नषा तणमतिरापनेया" स्वाभाविकी ज्ञान वल क्रियाय" इत्यादि श्रतियों का भाव है कि जो अलौकिक भाव है, उनमें तर्क नहीं करना चाहिये । श्री भागवत तो स्पष्ट ही कहती है कि-"भगवान में अपरिमित विशेषतायें हैं अतः उनमें दृष्टिगत परस्पर विरुद्धताओं का कोई विरोध सम्भव नहीं है, जिन लोगों ने ईश्वरीय कृपा का अवगाहन नहीं किया है ऐसे नवीव विचार वाले विकल्प वितर्क और कुतर्कों से शास्त्र की आलोचना करके अपने अन्तःकरण को दूषित करते हुए दुराग्रह करते हैं, किन्तु भगवल्लीला में ऐसे कुतर्क और विवादों की कोई गुंजायश नहीं है।" इस वाक्य में अचिन्त्य अनन्त शक्तिमान भगवत्स्वरूप को ही परम फल बतलाया गया है। कि च-"ता वां वास्तून्युष्मसि गमध्ये यत्र गावो भूरिश्रृंगार अयासः, अत्राह तदरुगायस्य वृष्णः परमं पदमवभाति भूरि" इति ऋग्वेदे पठ्यते, किंचिपाठभेदेन यजुः शाखायामपि ।" ता तानि वास्तूनि वां गोपी माधवयोः संबंधीनि गमध्ये प्रसादत्वेन प्राप्तमुष्मषिकामयामहे । “तानि कानि इत्याकांक्षायाम् गूढाभिसन्धिमुद्घारयति 'यत्र गोकुले गावो भूरिशृंगा बहुशृगां रुरुप्रभृतयो वसंति इति शेषः । ग्राम्यारण्यपशूपलक्षणर्यमुभयोरेवग्रहणम् । अत्राह-"भूमावेवतदुरुगायस्य बहुगीयमानस्यवृष्णः" । भक्त षुकामान् वपंतीतिवृषातस्यपदं स्थानं वैकुण्ठं ततोऽपि परमधिकं अत्र विचित्रलीलाकरणात् । भूरि यमुनापूलिननिकुञ्जगोवर्द्धनादिरूपत्वेन बहुरूपम् । तथा च तत्रत्यानि तानि कामयामहे, इति वाक्यार्थः सम्पद्यते । एतेनलीलासम्बन्धिवस्तूनां यत्रफलत्वेन बहुरूप प्रार्थनं तत्र तल्लीलाकत्तुः परमफलत्वे किं वाच्यमित्याशयो ज्ञाप्यते "अथ ह वा व तव महिमाऽमृत समुद्र विग्रुषा सकृल्लोढया स्वमनसि निष्पन्दमानानवरत सुखेनविस्मारितदृष्टश्रुतसुखलेषाभासाः. परमभागवता" इति श्री भागवते । एतेनापि कैमुतिकन्यायेन प्रभोरेव स्वतः पुरुषार्थत्वं ज्ञाप्यते फलप्रकरणत्वात्तदेवाचार्यतात्पर्यविषय इति ज्ञायते । ... "ना बा वास्तून्युष्मसि" इत्यादि ऋग्वेद की ऋचा है इसी से मिलती जुलती "तातानि वास्तूनि वां गोपी माधवयोः" इत्यादि यजुर्वेद को भी एक

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