________________ ( 651 ) इन्द्र के मद से होने वाली प्रययंकर वषां से पीड़ित प्रिय गोकुल की रक्षा में परायण, स्मितहासरूप अमृत की वर्षा से उनको आप्लावित करते हुए जिन्होंने गोवर्धन को धारण किया वे ही वेदांतों में विराजमान हैं। श्री कृष्णकृपयवाऽयं सिद्धान्तो हृदिभासते / तेनाधिकं वरीवत्ति न वक्तव्यं हरेनृणाम् / / श्रीकृष्ण की कृपा से ही यह सिद्धान्त हृदय में भासित हो रहा है। इसके अतिरिक्त भगवान के विषय में पाण्डित्य आदि कि आवश्यकता नहीं देनी चाहिए। भाष्यपुष्पाञ्जलिः श्रीमदार्चार्यचरणाम्बुजे / निवेदितस्तेन तुष्टा भवन्तु मयि ते सदा / / यह भाष्यपुष्पाञ्जलि पूर्वाचार्यश्री के चरणों में निवेदित है, वे मेरे ऊपर सदैव प्रसन्न रहें।