Book Title: Shrimad Vallabh Vedanta
Author(s): Vallabhacharya
Publisher: Nimbarkacharya Pith Prayag

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Page 702
________________ ( ६१६ ) ल्पफलदानं तत्राधिक गुणप्राकट्ये प्रयोजनाभावात् तावन्मात्रगुण प्रकटनं येन रूपेण ततोऽधिकफलदानं तत्र ततोऽधिकगुणप्रकटनमिति पूर्वस्मादाधिक्यमुच्यते । एवमेव सर्वत्र । नियतफलदानं तु स्वतंत्रेच्छत्वाल्लीलारूपमिति नानुपपन्नंकिंचित् प्रतिमादिष्वावाहनेन सन्निहिते विभूतिरूपे तद्भावनं पूजामार्गे तु भक्त्या तत्र प्रकटेतथा। "गुरौ तु,=शाब्देपरे च निष्णातं ब्रह्मणि" इति बिशेषणवत्वेनभगवदावेशात् तत्र तद्भावनमिति सर्वमवदातम् । "ब्रह्म से अधिक कुछ नहीं है, उसके समान या अधिक कुछ भी दृष्टिगत नहीं होता "ऐसी श्रुति प्रसिद्ध है फिर छांदोग्य के सनत्कुमार नारद संवाद में-" जो नाम ब्रह्म की उपासना करता है "इत्यादि में जो नामवाणीमन संकल्प चित्त ध्यान विज्ञान आदि की उपासना ब्रह्मत्वभाव से उत्तरोत्तर श्रेष्ठ बतलाई गई है उसका क्या तात्पर्य है, सभी उपास्यों का तो ब्रह्मत्व नहीं कह सकते । इस संशय पर कहते हैं कि-विभूतिरूपों का नियतफल मिलता है, जिस रूप से अल्पफल मिलता है, उसमें अधिक गुण बतलाने का तो कोई महत्व है नहीं अतः उतनी ही महत्ता बतला दी गई जिस रूप से, उससे अधिक गुणप्रकट न हो सकता है उसे, अधिक बतलाया गया है, ऐसा ही सब जगह मिलता है । नियतफल प्रदान करना तो सर्वतंत्र स्वतंत्र परमात्मा की लीला मात्र है, अतः उस पर संशय करना व्यर्थ है । प्रतिमा आदि में प्रभु का आवाहन किया जाता है उस सन्निहित विभूतिरूप में ब्रह्मभाव होता है अतः भक्ति से उसमें प्राकट्य होता है । इसी प्रकार गुरु. में भी "शाब्देपरेचनिष्णातं ब्रह्मणि" इस विशेषण से भगवदावेश ज्ञात होता है अतः ब्रह्मभाव माना जाता है, जो कि सुसंगत ही है। अपि च बादरिजैमिनि मतोक्त्यनन्तरं स्वमतोक्त्या तेत् समानविषयत्वमत्रापीत्यवगम्यते । तत्र च कार्यब्रह्मलोक प्राप्ति परब्रह्मप्राप्ति विषयत्व मुक्त पूर्वोत्तरपक्षभेदेन । बादरिमते सविशेषस्यैवोपास्यत्वाद् विशेषाणां चाविद्यकत्वादुपासनानां सर्वासां प्रतीकतद्रूपत्वमेव सिद्धयति । एवं सत्यप्रतीकालम्बनान्नयति इति वदताव्यासेन बादरिमतानुसारिणि उपासकस्य न कस्यापि ब्रह्मप्राप्तिरिति ज्ञाप्यते । वस्तुतस्तुपासनायामुषास्यस्वरूपज्ञास्याप्यंगत्वात्तन्मतीयानामुक्तरीन्या तदभावेन निरङ्गत्वादचिरादिप्राप्तिरपि न संभवति, किं पुनर्बह्मण इति निगूठाशयो व्यासस्य । एवं सति पर प्राप्तावेवोपोदवलकमुक्त भवतीति सैव व्यासाभिमतेतिसिद्धम् । दूसरी बात यह है कि बादरि जैमिनि के मतों को बतलाकर अपने मत

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