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'लीला करते हैं, वैसे ही अति कृपा करके भक्त के अन्तःकरण में अपने को प्रकट करके उसके स्नेहातिशय से उसके वशंगत होकर, अपनी लीला का रसानुभव कराते हैं, वह भक्त ब्रह्म अर्थात् परब्रह्म पुरुषोत्तम के साथ समस्त कामनाओं की अनुभूति करता है। चकार के प्रयोग से, उक्त श्रुति के अनुरूप स्मृति की ओर ईमन किया गया है । ज्ञानमार्गीय को अक्षर प्राप्ति होती है, तथा भक्तों को पुरुषोत्तम प्राप्ति होती है, यही निश्चित होता है।