Book Title: Shrimad Vallabh Vedanta
Author(s): Vallabhacharya
Publisher: Nimbarkacharya Pith Prayag

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Page 720
________________ ( ६३७ ) तादृशीमपि तां करोतीति श्रूयते । यथा सौभयुद्ध मोहवचनानि, हस्तादायुधच्युतिः, प्रभासीय लीला च । उवतरीत्या "सोऽश्नुत" इति श्रुत्या परब्रह्मत्वमवगम्यते । उक्त लालया तद् वैपरीत्यं च । एवं सत्येकस्या वास्तवत्वमन्यस्या अवास्तवत्वं वाच्यम् । “ते तेधामान्युष्मसि विष्णोः कर्माणि पश्यत्, तद्विष्णोः परमं पदम्, तद् विप्रासो विपन्यवः" इत्यादि श्रुतिभिः । ''सहस्रशीर्ष देवं विश्वाक्षं विश्व सम्भुवम्," विश्वनारायणं देवं अक्षरं परमं पदम् “विश्वतः परमन्नित्यं विश्वं नारायणं हरिम्", विश्वमेवेदं पुरुषस्तद्विश्वमुपजीवति, पति विश्वस्यात्मेश्वरं शाश्वतं शिवमच्युतम् “इत्यादिभिश्च शुद्ध ब्रह्मणः तविपरीतदर्शनेऽवश्यं हेतुर्वाच्यः । स त्वासुरव्यामोहनमेवेति पूर्वसूत्रेणोपपादितः । भक्तेभ्यः स्वरूपानन्ददानाय लोकवत्तुलोला कैवल्यमिति न्यायेन या लीलाः करोति, यया रिङ्गणादि लीला भगवतो नैसर्गिकधर्मरूपानन्दात्मकत्वेन विद्यमानाएव ता भक्ताः पश्यन्तीति द्वितीयसूत्रेणोक्तम् । अतएव लीलाया अनेक रूपत्वात् ब्रह्मणश्च श्रुतौ सैन्धवदृष्टान्तेनैकरसत्वनिरूपणाच्छद्ध ब्रह्मधर्मत्वं न सम्भवतीति शङ्कानिरासाय कैवल्यमित्युक्तम् । साक्षी चेता केवलो निगुणश्चेत्यादिश्रुतिषु याऽन्यधर्मराहित्यलक्षणा केवलतोक्ता सा लीलात्मिकव लीलाविशिष्टमेव शुद्ध परं ब्रह्म, न कदाचित् तद्रहितमित्यर्थः पर्यवस्यति । तेनस्वरूपात्मकत्वं लीलायाः पर्यवस्यति । तेन च नित्यत्वम् । एतद् विद्वन्मण्डने प्रपंचितम् । अथवा लीलव कैवल्यं जीवानां मुक्तिरूपम् । तत्र प्रवेशः परमामुक्तिरिति यावदित्यर्थः। __ लौकिक के समान प्रतीत होने वाले लीला पदार्थों में जो भक्तों की स्थिति देखी जाती है, वह भाव विषय की स्थिति में होती है, जैसे कि मोह रहित पुरुष सत् पदार्थ को देख लेता है वैसे ही इसकी भी स्पष्ट प्रतीति होती है यही बात ऊपर के दोनों सूत्रों में बतलाई गई हैं । "सोऽश्नुते' इत्यादि श्रुति से बतलाया गया है कि-भक्तकाम की पूर्ति के लिए ही लीला करते हैं । जिसके देखने सुनने और स्मरण करने से भक्तों को दुःख होता है, वैसी लीला भी करते हैं । जैसे कि क्षोभ युद्ध में लौकिक जीवों की तरह भगवान का मोह वचन, भगवान के हाथ से शस्त्र का गिरना, प्रभासक्षेत्र की लीला आदि । इस प्रकार “सोऽश्नुते" श्रुते परब्रह्मत्व निश्चित होता है। उक्त लीला से उससे विपरीत भाव भी निश्चित होता है। इनमें एक लीला वास्तविक है दूसरी अवास्तविक है, ऐसा भी निश्चित होता है। "ते ते धामान्युष्मसि"

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