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"प्रतर्दनो हवे" इत्यादि उपाख्यानों से ब्रह्मविद्या का निरूपण किया गया है "सभी उपाख्यान पारिप्लव रूप से प्रशंशा करते हैं" इत्यादि श्र ुति से उपाख्यानों की शंसनशेषता ज्ञात होती है। शंसन में शब्द मात्र का प्राधान्य रहता है, अर्थज्ञान की प्रधानता नहीं होती । उपदेशान्त आख्यानों का प्रतिपाद्य ज्ञान मंत्रार्थ की तरह प्रयोजक होता है, अतः कर्मशेषत । की बात नहीं कही जा सकती । कर्म प्राधान्य की बात तो बहुत दूर है । अंतः धर्मों की असिद्धि हो जाती है । इस पर कहते हैं, "पारिप्लवार्थाः ।" उक्त रीति से तो सारी उपाख्यान श्रुतियां कर्मशेषभूत ही सिद्ध होती है । किन्तु वादरायण आचार्य कहते हैं कि फिर भी ज्ञान की कर्मशेषता संभव नहीं है क्योंकि कर्म से ज्ञान, अधिक विशेष धर्म वाला कहा गया है अतः ज्ञान की कर्मशेषता नहीं हो सकती ।
ननु विशेषितत्वमाख्यानेष्वेवेत्यप्रयोजको हेतुरिति चेन्मैवम्, आचार्याशया - नवगमात् । तथाहि —“पूर्वं तुष्यतु दुर्जनः" इति न्यायेनाख्यानानां शंसन शेषत्वमुपेक्षित्वोच्यते । न हि आख्यानेष्वेवं ज्ञानं निरूप्यते किन्त्वन्यत्रापि । तथाहि तैत्तरीयके पट्यते - " ब्रह्मविदाप्नोति परं, तदेषाभ्युक्ता, सत्यं ज्ञान - मनंतं ब्रह्म" इत्युपक्रम्यं माहात्म्यविशेष ज्ञानार्थं आकाशादि कर्त्तृत्वमुक्त्वा आनन्दमयत्वं रसरूपत्वम् उक्त्वा " भोषास्मात्" इत्यादिना सर्वनियामकत्वं चोक्तन्वा भगवानेव पूर्णानन्द इति ज्ञापनायानन्दगणनां कृत्वा आनन्दमयं पुरुषोत्तमं प्राप्तेनानुभूयमानान्दस्वरूपं – “यतो वाचो निवर्त्तन्ते अप्राप्य मनसा सह " इत्यादिनोक्त्वा तद्विदो माहात्म्यं उच्यते । " एतंहवावन तपति किमहं साधु नाकरवं किमहं पापमकरवामिति" अत्र ज्ञानवान सच्चिद्रूपदेशकालापरिच्छिन्न सर्व कर्त्तारं निरवध्यानानन्दात्मकं सर्वनियामकं मनोवागगोचरं पुरुषीत्तमं प्राप्नोति । कर्म तु स्वयं क्लेशात्मकं तवांश्चास्यैवानन्दस्यान्यानि भूतानि मात्रामुपजीवन्तीति श्रुतेः क्षुद्रतरानंदजनक स्वर्गपश्वादिफलमाप्नोतीति विहितनिषिद्धकर्मणोश्चाप्रयोजकत्वं तस्मिन्नुच्यत इति कर्मणः सकाशाज्ज्ञानस्य निरवधिरेव विशेष उच्यत इति, न धम्यसिद्धिर्न वा कर्मशेषत्वं ज्ञानस्य सिद्धयति ।
यदि कहें कि - विशेषता तो आख्यानों में ही आ जाती है अतः सूत्रकार ने व्यर्थं सा हेतु प्रस्तुत किया है, सो आप आचार्य के आशय को नहीं समझ 'सके हैं, तभी ऐसी बात कर रहे हैं । “पूर्वं तुष्यतु दुर्जनः " इस न्याय के अनुसार rent को शंसन शेषता की उपेक्षा की गई है । आख्यानों में ही ज्ञान का