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वांजनसम्प्रयुक्तम् । " इत्यादि रूपा तदावृत्तिमेवफलसाधकत्वेनाह । अत्र " दृष्टान्तेनापि दृष्ट द्वारकत्त्वं श्रवणादीनां सूच्यते । आत्मावारे दृष्टव्य" इति पदेन श्रवणादीनां फलात्मकं दर्शनं पूर्वमुक्त्वा "श्रोतव्यो मन्तव्य" इत्यादिना तत्साधनानि पश्चाद्यदाह तेनात्मनः परोक्षमपि ज्ञानमवांतरफलरूपमिति । भक्तिमार्गे परमफल रूपतत्सजातीयत्वेन च फलमध्यपात्येवेति श्रुत्याभिमतमिति ज्ञायते । तेन सूत्रकृदपि फल प्रकरणेऽपि साधन विचारं चकारेति निगूढाशयः । तथापि शब्दक्रमादर्थं क्रमो बलीयानिति न्यायात् दृष्टव्य इति पदस्य पश्चात् संबंधे तुक्तरो तिर्नावसरं प्राप्नोति इति प्रकृति विचारस्य फल प्रकारणासंगतत्वमापततीति प्रकारान्तरेण सूत्रार्थ उच्यते । आवृत्तिरसकृदुपदेशात् । श्रुतिर्हि कर्मज्ञानभक्तोः साक्षात्परम्पराभेदेन पुरुषार्थं साधनत्वेन हीनमध्यमोत्तमाधिकारिणः प्रति कर्त्तव्यत्वेन प्रतिपादयति तत्र तेषां स्वरूपं तृतीयेऽध्याये बादरायणेन प्रतिपादितम् अथ तुरीयेऽध्याये तेषा फलं चिन्त्यते । तत्रादौ कर्ममार्गस्यफलमुच्यते । ज्ञानभक्तयोरेव क्रमेणोत्तमात्त्युत्तमफलकत्व मतस्तत्साधनत्वेनैक तत् कर्त्तव्यम् । न तु स्वातंत्र्येणेति ज्ञापयितुम् । आवृत्तिरीति- कर्ममार्गस्यावृत्तिःपुनर्ज्जन्मफलं तदप्यसकृत् । इदंपदमावृत्त्योभवत्रापि संबध्यते । तथा चात्र प्रमाणापेक्षायां तदाह हेतुत्वेन असकृदुपदेशादिति । श्रुतौ कर्ममार्गे पुनर्जन्मास - कृदुपदिश्यते यतः । अन्यथा सकृदुपदेशेनैवतदवगमेप्यसकृदुपदेशो व्यर्थः स्यात्, अतस्तथेत्यर्थः ।
श्रुति के अनुरूप ही स्मृति का विचार भी है जैसे कि - "मेरी पुण्यमयी कथा के श्रवण से जैसे-जैसे आत्मा का परिमार्जन होता जाता है वैसे-वैसे ही साधक सूक्ष्म तत्त्व को देख पाता हैं, जैसे कि - अंजन के प्रयोग से नेत्रों का मालिन्य दूर होता है वैसे ही श्रवण से मालिन्य दूर होता है ।" इत्यादि स्मृति में आवृत्ति को ही फल साधक बतलाया गया है । इस दृष्टान्त से भी श्रवण आदि की प्रत्यक्ष साधना सिद्ध होती है । " अरे ! आत्मा दृष्टव्य है ।" इत्यादि से श्रवण आदि साधनों की फलात्मकता पहिले क्तलाकर " वह श्रोतव्य और मंतव्य है" इत्यादि से उन श्रवण आदि साधनों का बाद में उल्लेख किया गया है, इससे निश्चित होता है कि - आत्मापरोक्ष तत्त्व है, किन्तु उसका साक्षाकार प्रत्यक्ष साधनों से हो संभव है । भक्ति मार्ग में परम फल रूप जो भक्ति प्राप्ति है वह उक्त प्रकार के आत्मसाक्षात्कार को सजातीय वस्तु है, वह भी इसी में उल्लेख हैं ऐसा श्रुति अभिमतं है । इसलिए सूत्रकार ने भी फल प्रकरण में साधन विचार प्रस्तुत किया है, इस सूत्र में प्रयुक्त चकार के प्रयोग
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