Book Title: Shrimad Vallabh Vedanta
Author(s): Vallabhacharya
Publisher: Nimbarkacharya Pith Prayag

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Page 690
________________ ( ६०७ ) गंतव्यम् । सर्वेषां सर्वत्र गमने देवयानं पन्थानं वदंत्याः श्रुतेः सामितत्कथनं. अनुपपन्न स्यादत उपासना भेदेन फलभेदं ज्ञापयन्ती तथा वदतीतियुक्तमुत्पश्यामः । ऐसा नहीं कह सकते कि पूर्व लोकों के अधिष्ठातृ देवता ही उत्तरोत्तर लोकों के आतिवाहिक होते हैं तथा ब्रह्मप्राप्ति के एकदम पहले का देवता ही ब्रह्म प्रापक होता है इसलिए उसी के नाम से उसे देवलोक कहते हैं। अन्य लोकों के विषय में जैसे अधिष्ठातृ देवता को आतिवाहिक नहीं मानना चाहिए वैसे ही यहाँ भी नहीं मानना चाहिए। यदि लोक के अधिष्ठातृ देवताओं को आतिवाहिक मानेंगे तो, अचिलोक के प्रापक आतिवाहिक कौन हैं ? इसका मतलब तो ये हुआ कि वह लोक न प्राप्त हो सकेगा, तब तो देवमार्ग खण्डित हो जायगा । इसलिए जैसे कि-विद्या के बल से अचि लोक की प्राप्ति होती है वैसे ही अन्य लोकों की भी माननी पड़ेगी। किसी जीव की कुछ लोकों में जाने के बाद हो ब्रह्म प्राप्ति हो जाती है और किसी की अनेक लोकों में जाने के बाद ही होती है । उन सब को भोग भूमि ही मानना चाहिए । सभी की सब लोकों में गमन वाले देवयान का वर्णन करने वाली श्रुति मानने से असंगति होगी उपासना के भेद से फल भेद वाली श्रुति ही सही है। ननु तेषामिह न पुनरावृत्तिरस्तीत्यादि श्रुतिभ्यो देवयानं पन्थान प्राप्तानां पुंसां ब्रह्मवित्वमवश्यं वाच्यम् । तेन सद्योमुक्तौ संभवंत्यां सत्यां क्षयिष्णुत्वेन क्षुद्रानंदत्वेन च हेयानां परमफल प्राप्तिविलम्बिहेतूनां अचिरादिलोकानां कामना कुतो, यतस्तद्हेतुभूतोपासनाः संभवंति । किं च, अचिरादिना तत्प्रथितेरित्यत्र यदुक्तं ज्ञानमार्गीयस्यैवाचिरादिप्राप्तिर्न भक्तिमार्गीयस्येतितदप्यनुपपन्नम् । "यत्कर्मभिर्यत्तपसा ज्ञानवैराग्यतश्च यत्" इत्युपक्रम्य “सर्व मद्भक्तियोगेन' मद्भक्तो लभतेऽञ्जसा, स्वर्गापवर्ग मद्धाम कथंचिद् यदि वांच्छति" इति भगवद वाक्याद्भक्तस्याप्येतद् वांच्छाफले संभवतः अन्यथा प्रभुन वदेत् । एवं सति भक्तिसुखं हित्वाऽन्यत्र कामनायां हेतुर्वाच्य इत्याकांक्षायां तमाह__ "उनकी यहाँ पुनरावृत्ति नहीं होती" इत्यादि श्रुतियों से तो ज्ञात होता है कि-देवयान मार्ग को प्राप्त व्यक्ति तो अवश्य ही ब्रह्मविद होता है । जब ज्ञान से ही सद्योमुक्त संभव है तब नाशवान् क्षुद्रानंद वाले हेय, परमफल को विलम्ब से प्राप्त कराने वाले अचिआदि लोकों की कामना होगी ही क्यों

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