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"आदित्य से चन्द्रमस चन्द्रमस से विद्युत्" इत्यादि में पठित विश्रुतलोक 5 बाद वरुणलोक की स्थिति माननी चाहिए क्योंकि विद्युत और वरुण का संबंध है | बिजली और जल का सम्बन्ध है, वरुण उसका स्वामी भी है ।
वरुणाच्चाधीन्द्रप्रजापती | ४ | ३ | ४ ||
स्पष्टमिदम् । अचिरादिपाठे "विद्यदनन्तरं तत्पुरुषोऽमानवः स एतान् ब्रह्म गमयति" इतिपठ्यते । तंत्रयस्योपासकस्य वरुणादिलोक गमनापेक्षा नास्ति तमपेक्ष्येति ज्ञेयम् मार्गेक्यनियमभिप्रेत्य सूत्रकारोऽन्यत्रोक्तानामन्येषामपि लोकानां तत्रैव निवेशनमाह ।
इस सूत्र का तात्पर्य स्पष्ट है अर्थात् वरुण के नीचे इन्द्र और प्रजापति लोक हैं । अचिरादि के पाठ में विद्युत के बाद " वहाँ का अमानव पुरुष उसे, इलोकों से होता हुआ ब्रह्म लोक में ले जाता है" ऐसा कहा गया है । जिस उपासक को वरुण आदि लोक में जाना आवश्यक नहीं है उनकी अपेक्षा से हो ऐसा उल्लेख है । मार्गेक्य के नियम के अभिप्राय से ही सूत्रकार ने अन्यत्र कहे गए लोकों की भी वहाँ उपस्थिति मानी है । उसी दृष्टि से यह सूत्र प्रस्तुत किया है ।
२ अधिकरण :
अतिवाहिकारत लगात् |४| ३ |५||
"विद्युदनन्तरं स तत्पुरुषोऽमानवः स एतान् ब्रह्म गमयति" इत्यत्र भवति - संशयः । उक्तश्रुतेर्गमयित्रैव ब्रह्मप्राप्तिरिति निश्चीयते । स च विद्युदनन्तरमेव पठ्येत । एवं सति यस्य वरुणाढिलोक गमनं तस्य वचनाभावेन गमयित्रप्राप्त - ब्रह्मप्राप्तिर्भवति न वेति । तत्र वाचनिकस्य यावद्वंचनत्वात्तदभावेन सा न भवतीति प्राप्त आह अतिवाहिका इति । एतदुक्तं भवति - यस्योपासकस्य यावत्फलभोगानन्तरं ब्रह्मप्राप्तिर्भाविनी तस्य तावद्भोगानन्तरं ब्रह्मप्राप्तिर्भवत्यत्र एव attafe श्रुतौ प्रजापतिलोकानन्तरं ब्रह्मलोकः पठ्यते । अन्यथा कृत्साधनि वै, तेषां ब्रह्मप्राप्तिसाधनत्वबोधकश्रुति विरोधश्च स्यात् ।
" विद्यदनन्तरं स तत्पुरुषो " इत्यादि के सम्बन्ध में एक संशय होता है कि इस श्रुति में ले जाने वालों से ही ब्रह्मप्राप्ति निश्चित होती है । किन्तु उन ले जाने वालों का उल्लेख विद्युत लोक के बाद किया गया है, अतः जो लोग