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( ५७१ ) कृत्य, अथ भगवल्लीलोपयोगि देहप्राप्यनंन्तरं भोगेन संपद्यते । “सोऽश्नुते सर्वान् कमान सह ब्रह्मणा विपश्चिता" इति श्रुत्या उक्तेन भोगेन संपद्यत इत्यर्थः श्रुत्यर्थस्त्वानन्दमयाधिकरणे निरूपितः । अलौकिकत्वं विनोक्तदेह विना चोक्तफलप्राप्तेर्व्यच्छेदकस्तुशब्दः ?
पुष्टिमार्गीय फल की प्राप्ति में, तर्कपूर्ण ढंग से प्रतिबन्ध का अभाव बतलाकर अब फल प्राप्ति के प्रकार को बतलाते हैं । कहते हैं कि भक्त स्थूल लिंग शरीर में सब कुछ छोड़ कर, भगवल्लीलोपयोगी दिव्य देह की प्राप्ति के बाद भगवदीय भोगों से युक्त होता है ।" वह विद्वान, ब्रह्म के साथ समस्त कामनाओं को प्राप्त करता है "इत्यादि श्रुति, भोग युक्त होने के प्रकार का उल्लेख करती है। इस श्रुति का अर्थ तो आनन्दमयाधिकरण में कर चके हैं। उक्त दिव्य देह के विना, उक्त अलौकिकफल फलसंभव नहीं है, यही बात तु शब्द से सूत्र में कही गई है।