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होता । आत्मा की उक्त प्रकार की प्राप्ति के अतिरिक्त कोई दूसरी गति तो होती नहीं यही बात "ब्रह्मव सन् ब्रह्माप्येति', वाक्य से कही गई है । पुरुषोत्तमात्मक, उनकी लीला के उपयोगी देह इन्द्रिय आदि की प्राप्ति होना ही ब्रह्मसन्" पद से कही गई है, ब्रह्मतिरिक्त देह आदि से वैसा होना संभव. नहीं है, व्यापक और महान पुरुषोत्तम स्वरूप की प्राप्ति ही उक्त कथन का तात्पर्य है । जीव ब्रह्म का अंश है अतः उसमें आनंदांश के आविर्भाव होने से उसमें ब्रह्मत्व है, प्राणादि का लय हो जाता है इसलिए वही ब्रह्म कहलाता है, यदि ब्रह्म से भिन्न स्थिति हो तो, ब्रह्मवसन ऐसा नहीं कह सकते थे । यही बात उसी प्रसंग में आगे श्लोक में कही गई है - 'उस ब्राह्मीस्थिति में मर्त्यं जीव अमृत हो जाता है, ब्रह्म प्राप्ति करता है ।" मरण संबंधी धर्मो को धारण करने से शरीर को मर्त्यं कहा जाता है, उस शरीर को धारण करने वाला जीव भी मर्त्य कहलाता है । मुक्ति पूर्व जीव मत्यं ही रहता है, पुष्टि लीला में प्रविष्ट होने के बाद अमृत होकर दिव्यरूप शरीर वाला हो जाता है। उस दिव्य शरीर से ही भलीभाँति ब्रह्म को प्राप्त करता है । अर्थात् भगवान के द्वारा होने वाली लीलारस का अनुभव करता है ।
भगवान बादरायण इमामेव श्रुति विषयीकृत तत्रोक्तप्राणानां लय एक. देवोतक्रमनियमोऽस्तीति संशये निर्णयमाहवाङ्मनसीति । तत्रहेतुद्द शंनादिति, एतदुक्लोभवति, भक्तेः स्नेहात्मकत्वात्तस्य प्रभु प्राकट्यफलकत्वात्तदौत्कण्ठ्ये. तस्यावश्यकत्वादयं मां पश्यत्विति प्रभ्विच्छया तस्मिन् सम्पन्ने चक्षुर्भ्यां मनसा च तद्रूपामृतमनुभवतः स कोऽप्युत्कटभावः समजनि येन प्रभुणा सह सर्वेन्द्रियव्यापारकृतीच्छा समभूत् । तत्र तेषामसामर्थ्याद भगवदानन्द संबंधिमनः संबंधेन
प्राप्स्याम इति तत्रैव संगताः तेनानन्देन सम्पन्ना जाता: अयमेवार्थोऽनेन सूत्रेणाग्रिमेण चात एव सर्वाण्यन्विति सूत्रेण निरूप्यते । दर्शनानन्तरमादौ सह सम्भाषणच्छेव जन्यत इति, बाङ्मनसि सम्पद्यत इति छान्दोग्ये स्फुटोक्ते सम्मत्या चादी सैवोक्ता एवं सति वाङ्मनसि संगता सती भगवदानन्देन सम्पद्यत इति सूत्रार्थः सम्पद्यते । दर्शनाभावेऽपि वेण्यादिशब्दपि तथा सम्पद्यत इति हेत्वन्तरमाह शब्दाच्चेति ।
भगवान बादरायण, इसी श्रुति के आधार पर प्राणों का लय एक बार ही होता है अथवा क्रमशः होता है इस संशय का निर्णय करने के लिए " वाङ् मनसि " आदि सूत्र प्रस्तुत करते हैं । वे कहते हैं कि- भक्ति स्नेहात्मक होती
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