Book Title: Shrimad Vallabh Vedanta
Author(s): Vallabhacharya
Publisher: Nimbarkacharya Pith Prayag

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Page 685
________________ ( ६०२ ) कंगच्छतीत्यर्थः। तत्र विनिगमक निवेक्षयितव्यस्तथा च संवत्सरलोक माह-अविशेषविशेभ्यामिति । ___ छांदोग्य श्रुति में वायुलोक की चर्चा नहीं है। कौषीतकि श्रुति में तो "य एतं देव पंथानम्" इत्यादि वाक्य में वायु आदि की स्पष्ट चर्चा है । छांदोग्य में अचिष की चर्चा है जो कि अग्नि का ही पर्याय है अतः उस पर तो विचार नहीं करना है, किन्तु वायुलोक को किस लोक से जाया जाता है, ऐसी शंका पर "वायुमव्दात्" सूत्र प्रस्तुत करते हैं। "अर्चिषौ" आदि वाक्य में संवत्सर लोक के बाद वायुलोक का निवेश करना चाहिए अर्थात् संवत्सर लोक से वायु लोक को जाते हैं । उसमें कारण का उल्लेख स्त्रकार "अविशेषविशेषाभ्याम्" सूत्रांश से करते हैं। ___ अत्रेदं ज्ञेयम्-अग्निहोत्रादिकर्म भिश्चित्तशुद्धावुपासनाभिर्ज्ञानोदये क्रममुक्त्यधिकारी हि तत्तलोकं गत्वा मुक्त्वान्ते ब्रह्मप्राप्नोति । कर्म तु अग्निसाध्य "भूलोक एव च भवत्यत आदौतत्रत्यो भोगस्ततस्तदुपरितन लोकानां पृथिवीदीक्षा तयाग्निदीक्षया दीक्षितः यथा पृथिव्यग्निगर्भ इत्यादि श्रुतिभ्यो भूरग्निप्रधाना भवत्यतो अर्चि राख्यमग्निलोकमादौ गच्छति । ततः कर्मोपायनयोरहरादि संवत्सरान्ते काले विहितत्वात्तत्र तत्र गत्वा मुक्ते । तथा च संवत्सरान्तानां भूसंबधित्वेनाविशेषात् तन्मध्ये वायोर्नप्रवेशः ।भूलोकादुपर्यन्तरिक्षलोकस्तदुपरि धूलो कस्तथा च वायुरन्तरिक्षस्याधिपतिरितिश्रुतेः सूर्यो दिवोऽधिपतिरिति श्रुतेस्तयो पौर्वापर्ये विशेषोहेतुरस्तीत्यादित्यलोकात् पूर्वमुक्तरीत्या भूलोकमध्य पाति संवत्सरस्य परस्ताञ्च वायुर्निवेशयितव्य इत्यर्थः। उक्त वर्णन से ये जानकारी होती है कि-अग्निहोत्र आदि कर्मो से चित्त शुद्ध होने पर उपासना करने से ज्ञानोदय होता है ऐसे क्रममुक्ति के अधिकारी उन लोकों में जाकर भोगों को भोगकर अन्त में ब्रह्म प्राप्ति करते हैं । कर्म अग्निसाध्य होता है जो कि भूलोक में ही होता है, इसलिए सर्व प्रथम पृथिवी के भोगों को भोगा जाता है उसके बाद ऊपर के लोकों में गमन होता है सर्व । प्रथम अग्निसंबंधी दीक्षा से पृथिवी में ही दीक्षित होते हैं । जैसा कि"पृथिव्याग्निगर्भ" श्रुति से ज्ञात होता है कि पृथ्वी अग्निप्रधाना होती है, इससे निश्चित होता है कि सर्वप्रथम पृथिवी से, अचिनामक अग्नि लोक में गमन होता है उसके बाद कर्म और उपासना के फलस्वरूप, अहरादि लोक से संवत्सर पर्यन्त लोकों में जाकर भोग भोगा जाता है । संवत्सर पर्यन्त लोक भू संबंधी हो हैं

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