Book Title: Shrimad Vallabh Vedanta
Author(s): Vallabhacharya
Publisher: Nimbarkacharya Pith Prayag

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Page 676
________________ ( ५६३. ) पहले "भूतेषुतच्छतेः" इत्यादि सूत्रों से मर्यादामार्गी जीवों के वाग आदि के लय का वर्नन किया गया, अब उन जीवों के उत्क्रमण' प्रकार का वर्णन करते हैं । “स एतास्तेजोमात्रा" इत्यादि श्रुति से बतलाया गया है किआत्मा के तेज का आयतन हृदय है, सर्व प्रथम हृदय का अग्रभाग प्रज्वलित होता है जो कि–पहिले वैसा प्रकाशित नहीं रहता, उसी समय होता है । वह प्रकाशित द्वारा वही, उस जीव का निर्गमन द्वार है उसी से जीव उत्क्रमण करता है । जैसा कि श्रृति कहती है-“उसका हृदय का अग्रभाग प्रकाशित होता हैं, उसी से यह आत्मा निष्क्रमण करता है नेत्र या मूर्द्धा से जाता है" इत्यादि । यद्यपि यहाँ तक तो सर्वसाधारण जीव की स्थिति होती है किन्तु ज्ञानी की गति औरों की तरह न होकर विशेष नाडी से होती है जो कि-एक सौ अन्य नाडियों से श्रेष्ठ भिन्न मूर्द्धा की ओर निकलती है। जैसा कि आया भी है-"एक सौ एक हृदय की नाडियों में से एक मूर्द्धा की ओर जाती है, उसमें जाकर जीव अमृत्व प्राप्त करता है" इत्यादि । इस गति में "हार्दानुगृहीत ऐसा हेत्वन्तगर्भ विशेषण दिया है अर्थात् "गुहां प्रविष्टौ परमेपराद्ध" श्रुति में वर्णित हृदयकाश से सम्बन्धी जो परमात्मा है, उसके अनुग्रह से ही वैसा संभव होता है । विद्या के सामर्थ्य से ही भगवदनुग्रह होता है.(दहर विद्या की उपासना से भगवदनुग्रह होता है) उस विद्या के अंगरूप अनासक्ति भाव और अहर्निश भगवत्स्मरण से ही भगवदनुग्रह होता है (अर्थात् अभ्यास और वैराग्य प्रभुकृपा के मूलभूत साधन हैं)। रस्म्यनुसारी।४।२।१८॥ ''अथ या एता हृदयस्य नाड्यस्ताः पिंगलस्याणिभ्नास्तिष्ठन्ति शुक्लस्य नीलस्य पीतस्य लोहितस्येत्यसौ वा आदित्यः पिंगल" इत्युपक्रम्याने पठ्यते"तमभित आसीना आहुर्जानासि मां जानासि मामिति । स यावदस्माच्छरीरादनुत्क्रान्तो भवति तावज्जानात्यथ यत्रतदस्माच्छरीरादुत्क्रामत्यैतैरेव रश्मिरूवं आक्रामत “इति अत्र तमभित इत्याद्युक्तेः सर्वसाधारण्युत्क्रान्तिः प्राप्यते पूर्वमादित्यत्वेनोक्तस्य पिंगलस्य रश्मिभिरूर्वा क्रमणं च तथा । अत्र संशयः ओकोऽग्रज्वलनादेरितरसाधारण्येपियथा का हार्दानुग्राहाद् विलक्षणा गतिविदुष उक्ता तथारश्म्यनुसारित्वमपीतर साधारणमुतस्मिन्न वेति ? तत्रावाधार णमाह,रश्म्यनुसारी निष्क्रामत्ययमेवेति ! "ये जो हृदय की नाडियाँ है वो पिंगल और सूक्ष्मतम है ये पिंगल वर्णसूर्य रश्मियों के सम्बन्ध से है, इनमें शुक्ल, नील, पोत लोहित भी है" ऐसा उपक्रम

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