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( ४८६ ) विशिष्टमेवेक रूपमुपास्यमिति व्यास हृदयमिति ज्ञायते । उपासना . निर्णयान्ते दर्शनात्मक हेतूक्त्वा सर्वोपासनानां भगवत्साक्षात्कारः फलमिति ध्वन्यते । माहात्म्यज्ञापनार्थ परं सर्वावतार रूपत्वं यथार्थमेव कैश्चिज्ज्ञाप्यते, यथार्थत्वादप्यविरोधोति ज्ञेयम् । - जो लोग रूपान्तर समाहार पूर्वक उपासना करते हैं, वे भी उपास्य रूप से एक ही रूप को मानकर उपासना करते हैं जिसके फलस्वरूप उन्हें एक ही रूप का दर्शन होता हैं। सभी रूपों का नहीं होता, इसलिये भी विकल्प निश्चित होता है । जिस रूप में जिन गुणों की स्थिति सुनी जाती है, उन्हीं गुणों से विशिष्ट रूप को उपास्य रूप से मानना चाहिये, यहीं व्यास जी का हार्दिक मत ज्ञात होता है । उपासना का निर्णय करते हुए अन्त में जो दर्शनात्मक हेतु उपस्थित किया उससे ध्वनि निकलती है कि-सभी उपासनाओं का फल भगवसाक्षात्कार ही है। कुछ लोग, माहात्म्य की दृष्टि से, परमात्मा के समस्त अवतार रूपों को यथार्थ बतलाते है, यथार्थ दृष्टि से भी उनको अविरुद्धता निश्चित होती है। .