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( ४७५ ) विनश्यति", अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् "यं प्राप्य न निवर्तन्ते न्तद्धाम परमंमम" इत्यादि तु गीतासु । श्री भागवतेऽपि- "दर्शयामास लोकं स्वं गोपानां तमसः परं सत्यं ज्ञानमनंतं यत् ब्रह्म ज्योतिः सनातनम्, यद् हि पश्यन्ति मुनयो गुणापाये समाहिता "इति दशमे । द्वितीये च-"तस्मै स्वलोकं भगबान् समाहितः संदर्शयामास "इत्युपक्रम्य कालत्रिगुण माया संबंधराहित्यमुक्त्वा भगवत्पार्षदानुक्त्वा विमानप्रमदा उक्त्वा श्रीरुक्ता । तथा च श्रुतिस्मत्येकवाक्यतायां ताहकस्वरूपमेवांक्षरमिति निर्णयो भवति ।
प्रश्न होता है कि-ज्ञानी के ज्ञान विषय और अक्षर में तथा भक्त की गुहा में आविर्भूत तत्त्व और अक्षर में भेद है कि नहीं ? ज्ञानी के ज्ञान विषय अक्षर में तो कोई भेद नहीं है, उन दोनों को सभी जगह एक बतलाया गया है। यदि कहें कि-भक्त के आविर्भूत तत्त्व और अक्षर में भेद है, क्योंकिनिराकार, लोकरूपता की चर्चा शास्त्र में मिलती है। सो कथन असंगत है लोकरूपता तो बाद में होने वाला रूप है जो कि इस रूप के समान नहीं होता किन्तु यह रूप तो अक्षर ही होता है जैसा कि श्रुति का कथन भी है"समुद्र के पार भुवन के बीच में" इत्यादि उपक्रम करके "वही भूतकाल में था वही भविष्य में होगा, ये सारा विश्व उस अक्षर परम व्योम में नहीं है।" उसके बाद भी और-"जो समुद्र के भीतर व्याप्त है, जिस परम अक्षर में सारी प्रजा व्याप्त है।" इत्यादि । स्मृति में भी जैसे-'इस व्यक्त जगत से वह अव्यक्त सनातन परतत्त्व भिन्न है, जो कि. समस्त भूतों के नष्ट हो जाने 'पर भी, नष्ट नहीं होता, उसे अव्यक्त अक्षर कहते हैं वही परम गति है, जिस मेरे परं धाम को प्राप्त करने के बाद कोई नहीं लौटते" इत्यादि गीता का वचन है, श्रीभागवत में भी-"गोप ग्वालों को श्री कृष्ण ने अपना, अन्धकार 'रहित परं दिव्यधाम दिखलाया जो कि-सत्य ज्ञान अनंत ज्योति रूप सनातन ब्रह्म है, जिसे कि, निगुण. स्थिर चित्त मुनि ही देख पाते हैं" ये दशम स्कन्ध का वाक्य है द्वितीय स्कन्ध में भी-"तस्मै स्वलोकं भगवान समाहितः संदर्शयामास" इत्यादि उपक्रम करके उस स्थान का त्रिगुणमाया संबंध राहित्य बतलाकर, उस स्थान में जाने वालों को भगवत् पार्षद बतलाकर, विमान अप्सरा आदि का उल्लेख कर श्री वैभव की बात कहते हैं । इस प्रकार श्रुति स्मृति की एक वाक्यता से निर्णय होता है कि भक्तों को अनुभूत होने वाला स्वरूप ही अक्षर है। ' एवं सति सच्चिदानंदत्वदेशकालापरिच्छेदस्वयम्प्रकाशत्वगुणातीतत्वादिधर्म