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प्रपंचनिर्माणमस्तीत्यवगंतव्यम् । ततश्च कस्यामप्यवस्थायां प्रपंचव्यतिरेकाभावान्मुक्तावपिस्यात् । स्वाप्यसंपत्त्योरज्ञान मात्र विशेषात् सति “सम्पद्य न विदुः" सति संपद्यामह इति । तस्माद् वाह्य सत् संपदोविद्यमानयोरपि यथा ज्ञानाभावात् अग्रहणम् एवं प्रपंचस्यापीत्येवं प्राप्ते।
उक्त प्रकरण में-य एषु सुप्तेषु जागति" में जीव की निद्रा मात्र में, भगवत सृष्टि बतलाई गई है। "स्वप्नं न कंचन पश्यति " में दर्शनमात्र का निषेध किया गया है। "न वाह्य किंचन वेद नान्तरं में जागरण और स्वप्न प्रपंच दोनों में सामान्य रूप से कुछ भी न देखने की बात कही गयी है जिससे ज्ञात होता है कि सुषुप्ति में प्रपंच निर्माण रहता है । इससे ये भी ज्ञात होता है कि किसी भी अवस्था में प्रपंच व्यतिरेक का अभाव हो जाय तो मुक्ति भी हो सकती है। स्वरूप और संपत्ति मे अज्ञान मात्र ही विशेष रूप से रहता है, जैसा कि "संपद्य न विदुः सति' इत्यादि से ज्ञात होता है । इससे निश्चित होता है कि बाह्य सत् संपत्ति के विद्यमान रहते हुए भी जैसे ज्ञान का अभाव नहीं माना जाता वैसे ही निद्रा में प्रपंच सृष्टि का भी अभाव नहीं है ऐसा मानना चाहिए।
उच्यते--तदभावो नाडीषु, तस्य स्वप्नस्याभावो नाडीषु, तथा आत्मनि च कुतः ? तच्छु तेः, प्रपंचाभावश्रुतेः कामनया हि प्रपंचः। सुषुप्तावस्थाया अकामरूपत्व श्रुतेः । "तद् वा अस्यैतदात्मकाममाप्तकाममकाम रूपमिति ।" नाडीषु आत्मनि चेत्ति ग्रहणात् सुषुप्तिद्विविधेति सूचयति । तथा हि हिता नाम नाड्यः पुरीतत्यन्ता हृदय देशाद् बाह्या, 'आभ्यंतर परमात्मा, हृदय देशस्तु जीवस्य इन्द्रियाणां च स एव देशः । तत्र निद्रया भगवच्छत्तया बहिर्हष्ट्याच्छादने भगवल्लीलायां तां पश्यति तत्राप्याच्छादने गाढ मृगतो ज्ञान रहितः क्रिया शक्त्या अन्तर्भगवन्त वा प्रविशति । बहिर्नाडीषु वा ममायाति । अतएव बृहदारण्यक षष्ठे “यत्र सुप्तो न कंचनकामं कामयत" इति वारद्वयमाह, "ता वा अस्यैता हिता नाम नाड्यः, तद्वा अस्यैतदात्मकाम्" इति भेदेन । सुषुप्तिस्तूभयत्र ज्ञानशक्तः सर्वथा तिरोधानात् । तस्मात् सुषुप्तौ न प्रपंच सृष्टिः ।
उक्त संशय का निराकरण करते हैं कि नाड़ियों में स्वप्न नहीं होता और आत्मा में भी नहीं होता, ऐसा श्रुति से ही निश्चित होता है । प्रपंच कामना से होता है । सुषुप्त अवस्था में जीव की निष्कामता श्रति में स्पष्ट बतलाई गई है "तद्वा अस्यतदात्मकाम', इत्यादि । निद्रा दो प्रकार की होती है, नाड़ियों