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( ३५३ ) सिद्धान्तेन विरोध परिहारमाह। विरोधो हि परिहारणीयः लोकवेदाभ्यां तदनुसारेण । 'महानवकाशोऽल्योऽवकाशो, यथावकाशं" दश चमसान्" इति लौकिक वैदिक व्यवहारो वस्तु धर्म विरुद्धो दृश्यते । व्यापकत्वं वृद्धिह्यासौ च आकाशस्यैव । तत्र यथा करके प्रविष्ट आकाशस्तथा व्यपदिश्यते । तथा सत्युभय सामंजस्यम् भवति । अन्यथा एकतरबाधो भवति । एवं तत्तद्नुप्रवेशात् ब्रह्माऽप्येवम् । न चौपाधिकत्वम्, जपाकुसुम लौहित्यवदन्यधर्मत्वाभावात् । अन्यानुविधायित्वेऽपि स्वधर्मा एव ते, कारणत्वादिवत् ।
न चागन्तुकत्वात् तद्धर्मा एव न भवतीति वाच्यम् । अन्य धर्मत्वे प्रमाणाभावात् । तद्गतत्व प्रतीतेश्च दृष्टत्वाच्चाविरोधः अविरोध प्रकारोऽयम् । यथोभय सांमजस्यं भवति प्रकारोऽपि तस्यैव तथा वक्तव्यः। तस्माद् यथा आकाशस्य वृद्धि ह्रासभाक्त्वं करकादिष्वन्तर्भावात् तथैवौभय सामंजस्यादेवं ब्रह्मापि बृद्धिह्रास पदेन शरीरे आकाश जीवयोरेकमुदाहरणं बोधयति ।
सिद्धान्तानुसार विरोध का परिहार करते हैं। लोक वेदानुसार विरोध का परिहार करना चाहिए । महान अवकाश, अल्पावकाश यथावकाश आदि लौकिक "दशचमसान्" इत्यादि वैदिक व्यवहार, वस्तु धर्म से विरुद्ध देखे जाते हैं । व्यापकत्व, वृद्धि और हास आकाश के ही बतलाये गए हैं वस्तुतः आकाश तो शून्य होता है उसमें बड़े छोटे का प्रयोग तो औपचारिक मात्र है, जैसे कि करक में प्रविष्ट आकाश उसी परिमाण का कहा जाता है। इस प्रकार का विचार करने से परमात्मा सम्बन्धी विलक्षण गुणों का सामंजस्य हो जाता है। अन्यथा एक पक्ष का बाध हो जाता है । जैसे आकाश विभिन्न स्थलों में विभिन्न परिमाण वाला कहलाता है, वैसे ही ब्रह्म भी विभिन्न स्थलों में प्रविष्ट होकर विभिन्न नामवाला होता है । ब्रह्म और जागतिक पदार्थों की औपाधिक एकता नहीं हैं। इनकी एकता तो जपाकुसुम और उसकी लालिमा के समान वास्तविक है । जैसे कि जपाकुसुम में अन्य धर्मत्व का अभाव है, वैसे ही जगत में भी अन्य धर्मत्व का अभाव हैं । सर्वकाम आदि गुणो का औरों के लिए प्रयोग किया जाता है, फिर भी वे परमात्मा के ही गुण हैं, क्योंकि सबके कारण तो वे ही हैं । ये भी नहीं कह सकते कि औरों के लिए प्रयोग किये गए वे धर्म आगन्तुक हैं, इसलिए वे परमात्मा के नहीं हैं । वास्तव में इन विशेषताओं को, परमात्मा के अतिरिक्त किसी अन्य का माना गया हो, ऐसा प्रमाण भी नहीं मिलता। इन गुणों की परमात्मगत प्रतीति भी होती है और प्रत्यक्ष देखा भी जाता है कि ये विशेषतायें