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अपरंच, अर्थोपनिषत्सु । क्वचिद् गोकुल वन्दाकानन सचरद् गोपरूपमनल्पकल्पद्रुमप्रसूनविरचित विचित्रस्थालीक कालिन्दी यलिलकल्लोल -संगिमृदुतरपवनचलदलकविराजमान गण्डमण्डलद्युतिमंडितकुण्डलप्रभानुभावित वामांसमिलन्मूद्धन्य महामणिको मुरलिकामुखावलीमिलदतितरल कर कमलयुगलांगुलीवशंवदविविधस्वरमूर्च्छनामोदिनब्रजवरीनितम्बिनिकदंबकटाक्षकुवलयाचितम् । क्वचित् कोदण्डमण्डितभुजदण्डखण्डितप्रचण्डदशमुण्डमति विचित्र चरित्राभिरामं राम स्व-स्वरूपम । क्वचित् करालवदनीवत्रासितकमलाकमलासनवृषभाऽसनादिकं नृकेसरिरूपं, क्वचिदुरुक्रमादि रूपंच निरूप्यते ।
कहीं अथर्ववेदीय गोपालतापनीयोपनिषद् में, गोकुल वृन्दावन में विहार करते हुए, अनेक वनपुष्पों से आच्छादित कालिन्दी के जल से संस्पृष्ट शीतल मृदुतर सुगंधित वायु से हिलते हुए बालों वाले, कुडलों की कान्ति से अत्युज्ज्वल कपोल वाले, बायें कंधे पर झुके हुए मुखारविंद से महामणि की मुरलिका को फूंकते हुए, अत्यंत कोमल कर कमल की चिकनी अंगुलियों से विविध स्वर मुर्छना की ध्वनि से मोहित ब्रजवनिताओं के कुवलय कटाक्ष से अचिंत गोपकुमार श्रीकृष्ण का वर्णन है। कहीं धनुषवाण से सुसज्जित, प्रबल रावण के उद्धारक विचित्र चरित रामस्वरूप का वर्णन है । तो कहीं, कराल भयानक मुख से भीत कमला, ब्रह्मा और शंकर आदि से स्तुत नृसिंह रूप का वर्णन है, और कहीं वामन आदि रूपों का वर्णन है ।
तथा च द्रव्य देवता भेदात् यागभेदवद् धर्माणां आवापोद्वापाभ्यां दृष्टादृष्टफल भेदाच्च वेद्य भेदे प्राप्ते ब्रह्मानेकत्वापत्ती श्रति विरोधात् विनिगमकाभावात् सर्वेषामुपासनाविषयाणामब्रह्मत्वमापतितम् ।
इसी प्रकार, देवताओं के स्वरूप भेद से, याग भेद की तरह, उन देवताओं के धर्मो के आवाप और उद्वाप से दृष्ट अदृष्ट फल का भेद होने से वेद्य तत्व में भी निश्चित भेद होता है, जिससे अनेक ब्रह्म निश्चित होते हैं, जो कि श्रुति विरुद्ध बात है इस प्रकार समस्त उपासना विषयों का अब्रह्मत्व सिद्ध होता है। ___ ननूपासनाविषयाणामौपाधिकत्वात् तेषांचाविद्याकल्पितत्वात् तद् विशिष्टानां तथात्वं युक्तमेव । न चैवंतन्निरूपकाणां वेदांतानामब्रह्मपरत्वं