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तु सर्वात्मभावैक समधिगम्य इति संवत्मभावरंव विद्याशब्देनोच्यते । परमकाष्ठापन्नं यद्वस्तु तदेव हि वेदांतेषु मुख्यत्वेन प्रतिपाद्यम् । अक्षर ब्रह्मादिकतु तद् विभूतिरूपत्वेन तदुपयोगीत्वेन मध्यमाधिकारिफलत्वेन च प्रतिपाद्यते । तेन तत्र विद्याशब्द प्रयोग औपचारिकः सर्वात्म भाव एव मुख्यः । युक्तं चैतत् - अक्षर विषयिण्या विद्यायाः सकाशात्तत उतम विषयिव्यास्तस्या उत्तमत्त्वम् - एवं सति पूर्व प्रपाठकस्याक्षर प्रकरणत्वादुत्तरस्य पुरुषोत्तम प्रकरणत्वात् सिद्धश्चात उक्तन्यायेन विद्यैवाग्रिमप्रपाठके निरूप्यते नतु पूर्वोक्तात्मज्ञान प्रकार विशेषः ।
जिस श्वेतकेतु उपाख्यान की चर्चा चल रही है, उसमें परोक्षवादी रूप से ब्रह्मभेद का बोध कराया गया है, जिससे पुरुषोत्तमाधिष्ठानत्व योग्यता ज्ञात होती है । आगे के प्रकरण में, केवल इतने मात्र से ही अधिष्ठानात्मक अक्षर का आविर्भाव बतलाया गया है, न पुरुषोत्तम का ही बतलाया गया है ।" सभी ज्ञानियों को पर प्राप्ति हो जाती हो सो बात नहीं है, "मैं एकमात्र भक्तिः से ही ग्राह्य हूँ" इत्यादि वाक्य से भक्ति की ही महत्ता बतलाई गई है, भगवदनुग्रह से और भक्त संग से ही भक्ति होती है, इस बात को बतलाने के लिए, तथा भक्त ही उसको जानने का अधिकारी है, इस बात को बतलाने के लिए, भक्त नारद और भगवदाबेश युक्त सनत्कुमार का संवाद दिखलाया गया है । वहाँ पर आत्मशब्द से पुरुषोत्तम का उल्लेख है भक्ति मार्ग में सहज स्नेह का विषय वह पुरुषोत्तम ही है । जो कि - सर्वात्मभाव से प्राप्य है, उस सर्वात्मभाव को ही वहाँ विद्या शब्द से बतलाया गया है । परमकाष्ठा को प्राप्त जो वस्तु है, वही वेदांतों की मुख्य प्रतिपाद्य वस्तु है । अक्षर ब्रह्म आदि को तो, उनकी विभूति रूप से, उनके उपयोगी रूप से और मध्यमाधिकारी के फल रूप से प्रतिपादन किया गया है । सर्वात्मभाव ही वहाँ पर मुख्य है, विद्या शब्द का प्रयोग तो औपचारिक है । अक्षर विषयिणी विद्या के सकाश से उस उत्तम विषयिणी विद्या की प्राप्ति होती है, इसलिए उस अक्षर बिद्या की उत्तमता है। इस प्रकार पूर्व पाठक के अक्षर विद्या प्रकरण से, उत्तर के पुरुषोत्तम प्रकरण की सिद्धि होती है उसी नियम से अग्रिम प्रपाठक में विद्या का ही निरूपण किया गया है, पूर्वोक्त आत्मज्ञान के प्रकार विशेष का निरूपण नहीं है ।
अत्र हेतुमाह - निर्द्धारणादिति । "सुखं त्वेव विजिज्ञासितव्यं इत्युक्त्वाः सुखस्वरूपमाह- - "यो वे भूमा तत्सुखम् नाल्पे सुखमस्ति भूमैवं सुखं भूमा