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गया ? इससे ये यमगति वेदविरुद्ध होने से, असिद्ध है। इस शंका का निराकरण करते हुए कहते हैं कि वेदांत में, गौणमुख्य फलस्वरूप देह प्राप्ति में, विद्या और कर्म को हेतु बतलाया गया है। विद्या से देवयान तथा कर्म से सोमभाव कहा गया है। दोनों को ही स्वाभाविक कारण कहा गया है । इसीलिए कौषीतकि ब्राह्मण में भी स्वाभाविक रूप से कर्म को ही, [चाहे वो लौकिक हो या भगवत्संबंधी कारण मानकर “सर्वे गच्छंति" ऐसा प्रयोग किया गया है । इस प्रसंग में भी यम मार्ग का उल्लेख नहीं किया गया। विद्या, कर्म को मुख्य मानकर दो मुख्य मार्गों का उल्लेख कर दिया गया इससे, यमगति का निराकरण तो नहीं हो जाता। न तृतीयेऽतथोपलब्धेः ।३।१।१८॥
ननु द्वयोस्तुत्यर्थं यस्तृतीयो मार्ग उक्तः, अर्थतयोः पथोर्न कतरेण च न "तानी मानि क्षुद्राब्यसकृदावर्तीनि भूतानि भवन्ति' इत्यादिना जुगुप्सेतेत्यन्तेन तृतीय निन्दया द्वयोः स्तुतिरिति स एव तृतीयोऽस्तु किं यम मार्गेण ? इत्यत आह-न तृतीये मार्गे तथा पुण्यपापयोरुपभोग उपलभ्यते । यतः समान ब्राह्मणे कीट, पतंगो, यदि ददशूकमिति योनौ निवृत्तेविद्यमानत्वान्नमहापापोपभोगः । नापि कीटादिषु महासुखोपभोगः। एकवाक्यता चोभयोर्युक्ता यद्यपि महाराजादिराजदंडादिषु तथोपभोगः संभवति तथापि, रंभादिसंयोगे नरके च यथा, तथा न संभवति । जड़े तु पंचभ्यामाहुतिर्भरत एव हीश्वरेच्छया जन्मद्वयमधिकम् । त्रिभिरिति वचनात् भरतोऽहमिति प्रतीतेश्च । ततः पूर्वस्मरणात् बाल्यादिवदेवजन्मत्रयम् । “तस्माज्जायस्व" इत्यादि वैलक्षण्यादतिरिक्तो यम मार्गः । पंचाहुति नियमाभावस्तु ज्ञानोपयोगि देहेऽप्यंशावतरणे पुष्टिमार्गत्वान्न तत्र दोषः ।
(तर्क) दोनों मार्गों की महत्ता दिखलाने के लिए जो तीसरा मार्ग बतलाया तथा "तानीमानि'' इत्यादि से अन्त में तृतीय मार्ग को जुगुप्सित बतलाते हुए उसकी निन्दा करके दोनों की स्तुति की, वही तीसरा मार्ग है, फिर यम माग की क्या विशेषता है ? इसका समाधान करते हैं कि तृतीय मार्ग में, यममार्ग की तरह पाप पुण्योपभोग की व्यवस्था नहीं है। जैसे कि, कीट, पतंग, अपने शरीर को छोड़कर दंदशूक आदि योनि को प्राप्त करलें तो उनका कोई महापापोपभोग नहीं हो जाता और न कीट आदि को महासुखोपभोग ही होता है । “तानि इमानि" इत्यादि एक ही वाक्य में, देवयान और पितृयान का उल्लेख कर दिया गया वह उचित है, जो कि कीट पतंग आदि रूपों से होने वाली गतियों से श्रेष्ठता का द्योतक है । संसार में महाराज पदवी प्राप्त व्यक्ति को जो सुख तथा