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लिए ही देव अन्न का होम करते हैं। प्रश्न होता है कि पांचवी आहुति में ही वह कैसे बदल जाता है ? उस पर कहते हैं कि अन्न आहुति से ही पुरुष रूप नहीं होता, अपितु बाद में जो वीर्य सिंचन योग होता है, तब अंतिम आहुति होती है आहुत अन्न में तत्काल वीर्य सिंचन योग नहीं होता । योग शब्द से यहाँ दिखलाया है कि इसमें भी अन्य देवता का अधिष्ठान रहता है, बिना उनके अनुग्रह के वीर्य सिंचन योग संभव नहीं होता है।
योनेः शरीरम् ।।१।२७॥ ___ हूयमानं निरूप्य फलं निरूपयति । तस्या आहुतेर्गर्भः संभवतीत्युच्यते । तत्र संदेहः, योनावन्तःस्थितमेव फलं, वहिनिर्गतंवा ? तत्र गर्भ शब्देनांतः स्थित एव, शरीरपरत्वे श्रुतिबाधः स्यात् । उपसंहारोऽप्यग्रे कर्त्तव्यभावादुपपद्यते । ततश्च षड्मासानन्तरं गर्भज्ञान संभवाज्जननान्तरं न गुरूपसत्यादि कर्त्तव्यम् ? इत्याशंक्य परिहरति-योनेनिर्गतं शरीरं गर्भशब्देनोच्यते। अग्नेरुत्थितस्यैव फलरूपत्वात् । मध्यमावस्याप्रयोजकत्वात् । मातृपरिपाल्यत्वाय गर्भवचनम् कलिलादिभावे पुरुष वचनत्वाभावादुपसंहारानुपपत्तिश्च । शरीरशब्देन वैराग्यादियुक्तः सूचितः । न तु स्वयं तदभिमानेन जात इति । तस्माद् योग्यदेहः साधन सहितो ब्रम्हज्ञानार्थ निरूपितः।
हूयमान वस्तु का निरूपण कर अब उसके फल का निरूपण करते हैं । इस विषय में एक संशय होता है, कि योनि के अन्दर वीर्य का पहुँच जाना ही अंतिम फल है, अथवा बाहर निकलने के बाद उसको फल कहते हैं ? श्रुति में जो गर्भ शब्द का प्रयोग किया गया है उससे तो अन्दर प्रवेश का ही अर्थ प्रतीत होता है, शरीर अर्थ मानने से तो उक्त श्रुति का बाध्य होता है। उक्त श्रुति के उपसंहार में भी आगे चलकर, कर्त्तव्य की इतिश्री वहीं तक कही गई है, उससे भी उक्त बात की पुष्टि होती हैं । छः महीने के बाद गर्भ में ज्ञान होता है, जन्म के बाद, ज्ञान के लिए उसे किसी गुरु की आवश्यकता होती हो, सो तो है नहीं, इत्यादि शंका करते हुए परिहार करते हैं कि योनि से निकले हुए शरीर को ही गर्भ शब्द से उल्लेख किया गया है। योनि तो एक अग्नि वेदिका के समान है, अग्नि से उत्थ वस्तु ही फल कहलाती है, इसलिए योनि निर्गत शरीर को ही फल समझना चाहिए । योनि प्रवेश और योनि निर्गमन के मध्य की स्थिति का यज्ञीय दृष्टि से कोई प्रयोजन नहीं है। बालक का शरीर माता द्वारा पालित होता है, इसलिए उसे गर्भ कहा गया है। वीर्य प्रविष्ट होने के बाद, अंदर कलिल' बुबुद्, कर्कन्धू आदि रूपों में विकसित होता है, उसे पुरुष नहीं कहा