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अब चौथी आहुति पर विचार करते हैं। वर्णन तो ऐसा मिलता है कि "मनुष्य संसर्गज कर्मदोष से स्थावर योनि प्राप्त करता है", फिर पंचाहुति में उसे अन्न रूप की प्राप्ति किसलिए होती है ? फिर अकस्मात् अन्न रूप होकर वह पिसाई और पकाई होने पर तो अवश्य ही जीव रहित हो जाता होगा फिर वीर्य तक कैसे पहुँचता है ? और जब भोजन को चबाकर खाया जाय तो उदर की जाठराग्नि में भी उसका पाक निश्चित ही होता है, ऐसा तो है नहीं कि उन स्थितियों में जीव जडभाव प्राप्त कर लेता हो इसलिए नष्ट न होता हो, यदि जीव जड़ हो जाय तब तो प्राकृतिक मर्यादा ही नष्ट हो जाय । अतः इन कठिन यातनाओं के बाद भी क्या जीव रेत भाव को प्राप्त हो जाता है ? इत्यादि संशय करते हुए परिहार करते हैं कि बोये हुये बीज पर जब जलवृष्टि होती है, उसी समय जल भावापन्न जीव वृष्टि के साथ बीज में प्रविष्ट हो जाता है, बीज में जो प्रथम से ही जीव रहता है, उसी में घुसकर तद्रूप हो जाता है, वायु आदि पूर्व अवस्थाओं की तरह छायारूप नहीं रहता। जैसे कि कोई अतिथि किसी के घर जाकर रहने लगता है। वैसे ही जीव भी बीज में घुसकर बीजस्थ जीव के साथ रहने लगता है। "ब्रीहिर्यबा" आदि श्रुति स्पष्ट रूप से, जीव का', पहिले की तरह तद्तद्भाव मात्र ही नहीं बतलाती, किन्तु जगत में स्थित उनका ब्रीहि आदि रूप में वर्णन करती है। जैसे कि ब्रीह्यादि में अधिष्ठातृ देवता रूप से नियुक्त जीवों को आत्मीय माना जाता है वैसे ही अन्नभाव में भी होता है [अर्थात् जैसे अन्न से हवन किया जाता है, वहाँ अन्न के अधिष्ठातृ देवता की चतन्यता का स्थायित्व स्वीकारते हैं वैसे ही इस अन्न भाव में भी स्वीकारना चाहिए । बीज में अधिष्ठित मान लेने से ही समाधान होता है, इस स्थिति वेदना मरण आदि के बाद भी, जीव वीर्य के छोटे छोटे कीटाणुओं के रूप में देखा जा सकता है । इसलिए अन्न का वीर्यभाव होना असम्भव नहीं मानना चाहिए।
अशुद्धमिति चेन्न शब्दात् ॥३॥१॥२५॥
किंचिदाशंक्य परिहरति । ननु अन्याधिष्ठानेऽगीकृते यातनाजीवानामशुद्ध त्वादशुद्ध मन्नस्यात्, तथा कथं योग्यदेह इति चेन्न । शब्दात् "देवा अन्नं जुह्वति तस्या आहुते रेतः संभवति'' इति देवैराहुतिरूपेण होमवचनाच्छुद्धत्वम् अन्यस्य हि संस्कारेणैव शुद्धिः । अन्यथा यावज्जीवं का गतिः स्यात् ? तस्मात् संस्कारशब्दा च्छुद्धमेवान्नम्।
कुछ संशय करते हुए परिहार करते हैं । कहते हैं कि अधिष्ठान स्वीकारने से, यातना से जीव अशुद्ध हो जाते होंगे अत: संसर्ग से अन्न भी अशुद्ध हो जाता