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अब विशेष कारण प्रस्तुत करने हैं- " उसी एक को जानो" इस वाक्य में, कर्म और कर्त्ता भाव का स्पष्ट भेद प्रतीत हो रहा है, इसलिए जीव, प्राण धारक नहीं हो सकता ।
प्रकरणात् ||३|६ ॥
जीव जड साधारण निराकरणाय विशेष हेतुमाह प्रकरणं हीदं ब्रह्मरणः । ब्रह्मदेवानामित्यारम्भे, न ब्रह्मविद्यामिति तेषामेवैतां ब्रह्मविद्यामित्यन्ते च ब्रह्मविद्याया एव प्रकर रिणत्वमवगम्यते । "ब्रह्म वेदममृतं पुरस्तादित्यादिभि - विस्पष्टो ब्रह्मवादः प्रतीयते ।”
जीव जड संबंधी संशय के निराकरण के लिए विशेष हेतु बतलाते हैंयह प्रकरण ब्रह्म संबंधी ही है । इसमें "ब्रह्मदेवानां " से प्रारंभ करके "तेषां एव ब्रह्मविद्याम् " तक ब्रह्मविद्या का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, इसलिए यह प्रकरण उसी से संबंधित निश्चित होता है "ब्रह्म वेदममृतं पुरस्तात् " इत्यादि से भी ब्रह्मवाद की स्पष्ट प्रतीति होती है ।
स्थित्यदनाभ्यां च | १|३|७|
सर्वस्याप्यन्यथाभाव शंका विशेष हेतुमाह - द्वा सुपर्णेति वाक्ये अनश्नन्नन्यो अभिचः कशीतीति, केवल स्थितिः परमात्मनः कर्मफल भोगो जीवस्य । प्रतः स्थित्यदनाभ्यां जीव परमात्मानामेवेव मध्ये परामृष्टौ । न हि सांख्यमत मेतादृशं भवति । श्रतोऽस्य वैशेषिकोपपत्ते विद्यमानत्वात् प्रातिलोम्येन सर्वा उपत्यो दृढा इति द्य भ्वाद्यायतनं भगवानेवेति सिद्धम् । यद्यपि पैंगयुपनिषदि द्वा सुपर्णेत्यस्यान्यथा व्याख्यानं प्रतिभाति, तदृचां प्रदेश विशेषऽन्यथा व्याख्यानं न दोषाय तस्मात् सत्त्वक्षत्रज्ञ ! जीवब्रह्मणो व्याख्येयः ।
सारा प्रकरण जीव परक है, इस अन्यथा विचार संशय का विशेष रूप से निराकरण करते हैं - ' द्वासुपर्णा" इत्यादि वाक्य के अनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति" पद में, परमात्मा की, साक्षी रूप से केवल स्थिति तथा जीवात्मा का फलभोग दिखलाया गया है। इस प्रकार स्थिति और भोग से जीव और परमात्मा का भेद दिखलाया है। इन्हीं दोनों पर विचार किया गया है । सांख्य मत के सिद्धान्त में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है, अतः यह