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है, इससे तो यही समझ में आता है कि - योग्य शरीर की प्राप्ति के लिए जीव स्वयं ही भूत सहित गमन करता है। श्रद्धा होम के बाद जीव सोमभाव को प्राप्त करता या सोमसंबंध प्राप्त करता है अथवा सोम योनि ? इस संशय पर, श्रौत अर्थ को तो श्रीतन्याय से ही निर्णय करना उचित है' उसमें तो उपाहुति प्राप्त रूप को गौण कहा गया है । शुद्ध संस्कृत भूतौ को जल स्थापन करना असंभव है, अतः शरीर वियोग के समय तभी तक देवताओं के साहचर्य का विलम्ब रहता है जब तक कारण का अभाव नहीं हो जाता, कारण के अभाव होने से वे देवता श्रद्धा रूप जल की ही आहुति देते हैं । इससे निश्चित होता है कि, जीव, सोम आदि रूपों से संश्लिष्ट होकर नहीं जाता ।
इत्यैवं प्राप्त उच्यते -- तदन्तर प्रतिपत्तौ रंहति सपरिष्वक्तः प्रश्न निरूपणाभ्याम् । तस्य जीवस्य यज्ञादिकर्तुरन्तर प्रतिपत्तौ; अन्तरे मध्ये मुख्य प्रतिपत्तेर्मोक्षलक्षणाया अर्वाग् योग्यशरीरं निष्पत्यकर्म । नहि वस्तुनो यज्ञान्नामिदं फलं भवति, अतो मुख्ये विलम्बात् प्रतिपत्तिरेषा । तस्य मुख्य फलस्य वा अन्तरे या प्रतिपत्तिः तदर्थं वा तत्कारणभूतैः संपरिष्वक्त एव रंहति ' मराणान्तरमेव कर्म समाप्तेः । सम्यग् भूतानि तदेव संस्कृतानि प्रतिदिन संस्कारार्थ च नैकट्यमपेक्षन्तं, अतः सम्यगेव च परिष्वक्तः । पूर्वं शरीरेण व्यवधानाच्छरीर दाहे वा तद् गतानि भूत सूक्ष्माणि सम्यक् तमेवासक्तानि । तं विधाकर्मणी समन्वारभेते पूर्व प्रज्ञा चेति । जीव पक्षे ज्ञानकर्मणी । कर्मणो हि स्वरूपभूता आपः । तत्र हेतुः प्रश्ननिरूपणाभ्याम् । " वेत्थ यथा पंचम्यामाहुतावापः पुरुष वचसो भवन्ति" इतिप्रश्न " असौ ara लोक गौतमाग्निस्तस्यादित्य एव समित्” इति निरूपणम् । प्रश्ने हि पुरुपत्वं वदति न देह मात्र तज्जीवाधिष्ठितानामेव भवति । सिद्धवत्कारवचनाच्च । निरूपणेsपि चन्द्रो भवतीति । तत्रापि सोमो राजा चेतनः । न ह्यन्याधिष्ठाने ह्यन्यस्य शरीरं भवेत् । तथान्नरेतोगर्भाश्च । अन्यथापि विनियोग संभवात् । जीव साहित्येऽप्यपामेव मुख्यत्वम् । शरीरवत् । अयं होमस्तत्र तथा तं जनयन्तीति न दुःखहेतुः । तस्मात् प्रश्न निरूपणान्यथानुपपत्त्या परिष्वक्त एव संस्कृतैर्भुत रहतीति सिद्धम् ।
उक्त मत पर कहते है कि - प्रश्न और निरूपण से तो यही निश्चित होता है कि- संश्लिष्ट होकर ही जाता है। यज्ञ करने वाले जीव, मोक्ष प्राप्त करने के प्रथम, निर्वाह के लिए सोमादि शरीरों से संसक्त होकर रहते हैं । ये शरीर इन्हे यज्ञ के फलस्वरूप मिलते हों सो बात नहीं है, अपितु मोक्ष प्राप्ति तक