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२६५ समस्त क्षणिकवाद निरस्त हो चुका, अब उस पर पुनः तत्त्वतः सूक्ष्म विचार कहते हैं । क्षणिक वादी, सब कुछ क्षणिक मानते हुए अनुभविता और अनुभूतिविषय की सादृश्यता बतलाते हैं, यह असंगत वात है, इसमें तो अनुभव और स्मरण दोनों की एकाश्रयता और एक विषयता हो जावेगी। नासतोऽदृष्टत्वात् ।२।२।२६।।
अपि च । नानुपमर्य प्रादुर्भाव वैनाशिका मन्यन्ते । ततश्चासतोऽलीकात् कार्य स्यात् । तन्न, अदृष्टत्वात् । नहि शशशृगादिभिः किंचिद् कार्य दृश्यते। ___ऊपर के पाठसूत्रों से वैनाशिकों के अभिमत क्षणिकवाद का निराकरण करके अब उनकी अभिमत प्रभाव से भावोत्पत्ति की बात का निराकरण करते हैं ! उन लोगों का एक सूत्र है “नानुपमृद्य प्रादुर्भावात्" उसमें वे अनुमद्य रहित प्रादुर्भाव की सिद्धि करते हैं। और ऐसा मान कर वे सारा कार्य असत् मौर अलीक कहते हैं। ये बात समझ में नहीं पाती, ऐसा कहीं देखने में नहीं पाता, शशशृंगादि कार्य कहीं देखे नहीं जाते।
एवं सतः कारणत्वं पूर्वपाद उपपाद्यासतः कारणत्वं निराकृत्य व्यासचरणः वेदानामव्याकुलत्वे संपादितेऽपि पुनदत्यव्यामोहनार्थ प्रवृत्तस्य भगवतो बुद्धस्याऽज्ञया "त्वंचरुद्र महाबाहो मोहशास्त्राणि कारय, अतथ्यानि वितथ्यानि दर्शयस्व महाभुज । स्वागमैः कल्पितस्त्वंच जनान् मद्विमुखान् कुरु" इत्येवंरूपया महादेवादयः स्वांशेनावर्तीय वैदिकेषु प्रविश्य विश्वासार्थ वेदभागान् यथार्थानपि व्याख्याय सदसद्विलक्षणायसदपरपर्यायामविद्यां सर्वकारणत्वेन स्वीकृत्य तन्निवृत्तयर्थं जातिभ्रंशरूपं संन्यासपाखण्ड प्रसार्य सर्वमेव लोकं व्या मोहितवन्तः। व्यासोऽपिकलह कृत्वा शंकरं शप्त्वा तूष्णीमास । प्रतोऽग्निना मया सर्वतः सदुद्धारार्थ यथाश्रु तानि श्रुति सूत्राणि योजयता सर्वो मोहो निराकृतमिति नात्रोच्यते ।
भगवान ध्यास देव ने प्रथम पाद में सत् कारणवाद का उपपादन करके असत् कारणवाद का निराकरण करके श्च तियों का सामंजस्य स्थापित कर दिया फिर भी दैत्य मोहन के लिए प्रवृत्त भगवान बुद्धको