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निश्चित नहीं है । तथा अन्य मंत्र "ज्ञाता और अज्ञाता दो अज ईश और अनीश है, एक प्रजा भोक्त भोग्यार्थ युक्त है, आगे जो योनि है, उसमें सारा विश्व का रूप और सारी योनियाँ निहित हैं" ऋषि पुत्र कपिल उस ज्ञान को पहिले कहे गए हैं, आने वाली पीढ़ियां उसी के अनुसार तत्त्व को देखती हैं । "इत्यादि वाक्य तो स्पष्ट रूप से नाम का निर्देश करते हुए मत की पुष्टि करती हैं, इससे निश्चित होता है कि वैदिक वाङमय में सांख्य मत स्वीकृत है।
इत्येवं प्राप्ते उच्यते-चममवदविशेषात् । “अर्वाग् विलश्चमस ऊर्ध्वबुध्नस्तस्मिन् यशो निहितं विश्व रूपम्, तस्यासते ऋषयः सप्त तीरे बागष्टमी ब्रह्मणा संविदान" इति मंत्रे यथा न विशेषो विधातुं शक्यते, नहि कर्म विशेषं कल्पयित्वा तत्रावागविलचमस कल्पयित्वा तत्र यशो रूप सोमं होतारो मंत्रेण भक्षयेयुरिति कल्पयितुंशक्यते । तथा प्रकृते लोहित शुक्ल कृष्ण शब्देन रजः सत्त्वतमांसि कल्पयित्वा न तद्वशेन सर्वमेव मतं शक्यते कल्पयितुम् । कपिल ऋषि वाक्यमप्यनित्य संयोग मयानित्यऋषेरेवानादकम् । तस्मान्न मंत्र मात्रेण प्रकरण श्रुत्यन्तर निरपेक्षेण विशेषः कल्पयितुं शक्यः ।
उक्त कथन पर सिद्धान्त रूप से “चमसवदविशेषात्" सूत्र प्रस्तुत करते हैं, कहते हैं कि-"अर्वाग्विलश्चमस" इत्यादि मंत्र में जैसे, विशेष विधि को निर्धारित करना कठिन है, वहां कर्म विशेष की कल्पना कर, उसमें अर्वाग्विलश्चमस से यश रूप सोम को होता मंत्र से भक्षण करते हैं ऐसा काल्पनिक अर्थ भी नहीं कर सकते। वैसे ही प्रकृति के लिए प्रयुक्त रक्त शुक्ल कृष्ण शब्द से सत्त्व रज तम गुणों की कल्पना कर उसके वश में सारा जगत है। ऐसी कल्पना नहीं कर सकते । कपिल ऋषि वाक्य भी, निकृषि वाचक हैं। लोग इस नाम के ऋषि को जन्म लेने वाला न मान लें इस बात को बतलाने के लिए नाम लेकर निर्देश किया गया है । सांख्य मत वाले कपिल की चर्चा नहीं है । केवल मंत्र मात्र से, बिना किसी श्रुति प्रकरण के, विशेष कल्पना करना शब्द नहीं है । ज्योतिरुपकमात्त तथा ह्यधीतम एके ११४६॥
ननु चमस मंत्रे अर्वाग्विल इति मंत्र व्याख्यानिमस्ति । शिरः चमसः प्राणावं यशः, प्राणा वा ऋष इति । नात्र तथा ब्याख्यानमस्तीतीमां