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प्रथम अध्याय
तृतीय पाद
१ अधिकरण :
धुभवाद्यायतनं स्व शब्दात् ११३॥
द्वितीय पादे प्राधेयरूपो भगवान् प्रतिपादितः । प्राधाररूपोऽत्र प्रतिपाद्यते तेन "सर्वब्रह्म" इति फलिष्यति । ___ भगवान बादरायण ने द्वितीय पाद में प्राधेय रूप का प्रतिपादन किया, अब इस तृतीय पाद में प्राधार रूप का प्रतिपादन करते हैं इससे सिद्ध होगा कि सब कुछ ब्रह्म है। ___ इदं श्रूयते-“यस्मिन् द्यौःपृथिवीचान्तरिक्षमोतं मनः सह प्राणश्च सर्वैः, तमेवैकं जानथ प्रात्मानमन्यावाचो विमुंचथाऽमृतस्तष सेतुः" इति ।
ऐसी श्रुति है कि-"जिसमें छौ, पृथिवी, अन्तरिक्ष और मन सहित समस्त प्राण स्थित हैं, उन्हीं एक को जानने की चेष्टा करो, अन्य किसी की बात भी मत करो, वही अमृत के सेतु हैं" इत्यादि ।
"बाधकानां बलिष्ठत्वात् साधकानभावतः, प्राचारधर्मा बाध्येरन् इति पादोऽभिधीयते यस्मिन्नित्यादि वाक्ये च वाक्यार्थः सर्व बाधितः, अर्थात् प्रकरण लिंगादिति पूर्व विचार्यते।"
बाधक वाक्यों के बलिष्ठ होने से, साधक वाक्यों के प्रभाव से, अचार धर्मों का बाध होता है, यही पाद में दिखलाया गया है। "यस्मिन् द्यौ" इत्यादि वाक्य से सारा वाक्यार्थ बाधित होता है । अर्थात् प्रकरण लिंग से प्रबल है इसलिए पहिले उसी पर विचार करते हैं।