________________
अनगार
EMA
ऋडिन् डिम्भैः प्रसादप्रातिघधनरसं सस्मयस्मेरकान्ता, -
दृक्संबाधं जिहीते नयनसरसिजान्यौरसः पुण्यभाजाम् ॥ ३४ ॥ - खेलते समय जो अपनी छातीमें धूलि लग गई थी उसके बदलेमें पिताकी छातीमें पूजादिकके समय लगे हुए चंदनको उत्सुकताके साथ खरीद कर-छुडा लेकर-बडी उत्सुकतासे लिपटकर अपनी छातीपरकी धूल पिताकी छातीमें लगादी और पिताकी छाताके चंदनको छुडाकर अपनी छातीमें लगा लिया; ऐसी ऐसी क्रियाओं के करनेसे, तथा प्रिय वाक्योंके द्वारा कानोंको अच्छी तरह तृप्त करके और चलते समय जिसमें घुघुरुओंका झुनुन् झुनुन् शब्द होरहा है इस तरहसे शीघ्रताके साथ पैर रखते हुए कुछ दूरतक चलकर एवं क्षणमें संतोष और क्षणमें कोप करनेके कारण जिसमें अत्यंत रस भरा हुआ है इस तरहसे अपनी समान नयवाले बालकोंके साथ खेलता हुआ और सपुत्र पुण्यशालियोंको इस तरहसे नयनकमलोंका विषय-दृष्टिगोचर-देखनेको प्राप्त होता है कि जिसमें सस्मय-ऐसा पुत्र होनेसे आत्मोत्कर्षकी धारणावश उत्पन्न हुए गर्वसे युक्त तथा स्मेर--इषदहासस्वभाव-हंसमुख कान्ताओंकी दृष्टियोंने अत्यंत बाधा डाल रक्खी है। भावार्थ-भाग्यशालियोंको अत्यंत मनोहर पुत्र और स्त्री एक साथ दोनोंका सुख प्राप्त होता है। . .. पुण्यशालियोंके पुत्रकी कौमार और यौवन अवस्थामेंके योग्य गुणसंपत्तिकी प्रशंसा करते हैं: ----
सद्विद्याविभवैः स्फुरन्धुरि गुरूपायजितैस्तज्जुषां, दोःपाशेन बलासितोपि रमया बध्नन् रणे वैरिणः ।
आज्ञैश्वर्यमुपागतस्त्रिजगतीजाग्रद्यशश्चन्द्रमा, देहेनैव पृथक् सुतः पृथुवृषस्यैकोपि लक्षायते ॥ ३५ ॥
अध्याय