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सामायिकविचार]
मोक्षमाला ६ निदानदोष-सामायिक करके उसके फलसे धन, स्त्री, पुत्र आदि मिलनेकी इच्छा करना निदानदोष है।
७ संशयदोष--सामायिकका फल होगा अथवा नहीं होगा, ऐसा विकल्प करना संशयदोष है।
८ कषायदोष-क्रोध आदिसे सामायिक करने बैठ जाना, अथवा पीछेसे क्रोध, मान, माया, और लोभमें वृत्ति लगाना वह कषायदोष है।
९ अविनयदोष-विनय रहित होकर सामायिक करना अविनयदोष है। १० अबहुमानदोष-भक्तिभाव और उमंगपूर्वक सामायिक न करना वह अबहुमानदोष है ।
३८ सामायिकविचार
(२) मनके दस दोष कहे, अब वचनके दस दोष कहता हूँ। १ कुबोलदोष—सामायिकमें कुवचन बोलना वह कुबोलदोष है । २ सहसात्कारदोष-सामायिकमें साहससे अविचारपूर्वक वाक्य बोलना वह सहसात्कारदोष है । ३ असदारोपणदोष-दूसरोंको खोटा उपदेश देना वह असदारोपणदोष है । ४ निरपेक्षदोष—सामायिकमें शास्त्रकी उपेक्षा करके वाक्य बोलना वह निरपेक्षदोष है। ५ संक्षेपदोष-सूत्रके पाठ इत्यादिको संक्षेपमें बोल जाना, यथार्थ नहीं बोलना वह संक्षेपदोष है। ६ क्लेशदोष-किसीसे झगड़ा करना वह क्लेशदोष है। ७ विकथादोष-चार प्रकारकी विकथा कर बैठना वह विकथादोष है। ८ हास्यदोष-सामायिकमें किसीकी हँसी, मस्खरी करना वह हास्यदोष है । ९ अशुद्धदोष—सामायिकमें सूत्रपाठको न्यूनाधिक और अशुद्ध बोलना वह अशुद्धदोष है।
१० मुणमुणदोष-गड़बड़ घोटालेसे सामायिकमें इस तरह पाठका बोलना जो अपने आप भी पूरा मुश्किलसे समझ सकें वह मुणमुणदोष है।
ये वचनके दस दोष कहे, अब कायके बारह दोष कहता हूँ।
१ अयोग्यआसनदोष-सामायिकमें पैरपर पैर चढ़ाकर बैठना, यह श्रीगुरु आदिके प्रति अविनय आसनसे बैठना पहला अयोग्यआसनदोष है।
२ चलासनदोष--डगमगाते हुए आसनपर बैठकर सामायिक करना, अथवा जहाँसे बार बार उठना पड़े ऐसे आसनपर बैठना चलासनदोष है।
३ चलदृष्टिदोष-कायोत्सर्गमें आँखोंका चंचल होना चलदृष्टिदोष है।
४ सावधक्रियादोष-सामायिकमें कोई पाप-क्रिया अथवा उसकी संज्ञा करना सावधक्रियादोष है।
५ आलंबनदोष-भीत आदिका सहारा लेकर बैठना जिससे वहाँ बैठे हुए जीव जंतुओं आदिका नाश हो अथवा उन्हें पीड़ा हो और अपनेको प्रमादकी प्रवृत्ति हो यह आलंबनदोष है। ... ६ आकुंचनप्रसारणदोष-हाथ पैरका सिकोड़ना, लंबा करना आदि आकुंचनप्रसारणदोष है ।