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श्रीमद् राजेन्द्र ६४५ मूलमार्गरहस्य आत्मा, देह आदिसे भिन्न है, उपयोगमय है, सदा अविनाशी है, इस तरह सहरुके उपदेशसे जाननेका नाम ज्ञान कहा है । जिनभगवान्के मूलमार्गको सुनो ॥ ६॥ - जो ज्ञानद्वारा जाना है, उसकी जो शुद्ध प्रतीति रहती है, उसे भगवान्ने दर्शन कहा है । उसका दूसरा नाम समकित भी है । जिनभगवान्के मूलमार्गको सुनो ॥७॥ .. जीवकी जो प्रतीति हुई—उसे जो सबसे भिन्न असंग समझा-उस स्थिर स्वभावके उत्पन्न होनेको चारित्र कहते हैं, उसमें लिंगका भेद नहीं है । जिनभगवान्के मूलमार्गको सुनो ॥ ८ ॥ - जहाँ ये तीनों अभेद-परिणामसे रहते हैं, वह आत्माका स्वरूप है। उसने जिनभगवान्के मार्गको पा लिया है, अथवा उसने निजस्वरूपको ही पा लिया है । जिनभगवान्के मूलमार्गको सुनो ॥९॥
ऐसे मूलज्ञान आदिके पानेके लिये, अनादिका बंध दूर होनेके लिये, सद्गुरुका उपदेश पानेके लिये, स्वच्छंद और प्रतिबंधको दूर करो । जिनभगवान्के मूलमार्गको सुनो ॥ १० ॥ ___इस तरह जिनेन्द्रदेवने मोक्षमार्गका शुद्ध स्वरूप कहा है। उसका यहाँ भक्तजनोंके हितके लिये संक्षेपसे स्वरूप कहा है । जिनभगवानका मूलमार्गको सुनो ॥ ११ ॥
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६४६ श्री आनंद, आसोज सुदी २ गुरु. १९५२
ॐ सद्गुरुप्रसाद श्रीरामदासस्वामीकी बनाई हुई दासबोध नामकी पुस्तक मराठी भाषामें है। उसका गुजराती भाषांतर छपकर प्रगट हो गया है । इस पुस्तकको बाँचने-विचारनेके लिये भेजी है।
उसमें प्रथम तो गणपति आदिकी स्तुति की है। उसके पश्चात् जगत्के पदार्थीका आत्मरूपसे वर्णन करके उपदेश किया है । बादमें उसमें वेदान्तकी मुख्यताका वर्णन किया है। उस सबसे कुछ भी भय न करते हुए, अथवा शंका न करते हुए, ग्रन्थकर्ताके आत्मार्थविषयक विचारोंका अवगाहन करना योग्य है।
छे देहादियी मिन आत्मा रे, उपयोगी सदा अविनाश । मूळ• एम जाणे सद्रु-उपदेशथी रे, कहुं शान तेनुं नाम खास । मूळ ॥६॥ जे शाने करीने जाणियुरे, तेनी व छे शुद्ध प्रतीत । मूळ. कई भगवंते दर्शन तेहने रे, जेनुं बीजू नाम समकीत । मूळ• ॥७॥ जेम आवी प्रतीति जीवनी रे, जाण्यो सर्वेयी भिन्न असंग । मूळ० तेवो स्थिर स्वभाव ते उपजे रे, नाम चारित्र ते अणलिंग । मूळ ॥८॥ तेत्रणे अभेद परिणामयी रे, ग्यारे वत्तें ते आत्मारूप । मूळ. . तेह मारग जिननो पामियोरे, किंवा पाम्यो ते निजस्वरूप । मूळ• ॥९॥ एवां मूळ ज्ञानादि पामवां रे, अने जवा अनादिबंध । मळ. उपदेश सद्गुरुनो पामवारे, टाळी स्वच्छंद ने प्रतिबंध । मूळ ॥१०॥ एम देव जिनंदे भाखियुं रे, मोक्षमारगर्नु शबखरूप । मूळ• भव्य जनोना हितने कारणे रे, संक्षेप का स्वरूप । मूळ• ॥ ११ ॥