________________
परिशिष्ट (२)
पृष्ठ लाइन ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे, ओर न चाटुं रे कंत । रिझयो ( रीझ्यो ) साहिब संग न परिहरे रे, भांगे सादि अनंत ॥ ऋषभ० ।
[ आनन्दघनचौबीसी ऋषभदेवजिनस्तवन १, पृ. १ ] ६३५-४ एक अज्ञानीना कोटि अभिप्रायो छे, अने कोटि ज्ञानीनो एक अभिप्राय छ । =एक अज्ञानीके करोड़ अभिप्राय हैं, और करोड़ ज्ञानियोंका एक अभिप्राय है।
[ अनाथदास ] ५२६-२० एक देखिये जानिये [ रमि रहिये इकठौर । . समल विमल न विचारिये यहै सिद्धि नहि और ॥] समयसारनाटक जीवद्वार २०, पृ. ५०-पं. बनारसीदास; जैनग्रन्थरत्नाकर
कार्यालय, बम्बई ] २४१-१० एक परिनामके न करता दरब (व) दोय (दोइ) दोय (इ) परिनाम एक दर्ब (4) न धरतु है। एक करति दोई (इ) दर्ब (4) कबहों (हूँ) न करै दोई (इ) करतूति एक दर्ब () न करतु है। जीव पुदगल एक खेत-अवगाही दोई (उ) अपने अपने रुप (रूप) दोउ कोउ न टरतु है। जड़ परिनामनिको (को) करता है पुदगल चिदानंद चेतन सुभाव आचरतु है ॥ [समयसारनाटक कर्त्ताकर्मक्रियाद्वार १० पृ. ९४.] २७७-२ ।
६७७-१८ एगे समणे भगवं महावीरे इमीसेणं (इमीए)ऊसप्पि (ओसप्पी)णीए चउवीस (चउव्वीसाए) तित्थर्यराणं चरिमतित्थयरे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिनिबुडे (जाव) सव्वदुरूख (क्ख) प (प) हीणे ।
[ठाणांगसूत्र ५३. पृ. १५, आगमोदयसमिति ] ७३१-२२ एर्नु स्वमे जो दर्शन पामे रे तेनुं मन न चढे बीजे भामे रे थाय कृष्णनो लेश प्रसंग रे तेने न गमे संसारनो संग रे ॥१॥ हसतां रमतां प्रगट हरी देखुं रे मारूं जीव्युं सफळ तव लेखं रे । मुक्तानंदनो नाथ विहारी रे ओधा जीवनदोरी अमारी रे ॥२॥ [ उद्धवगीता ८८-२-३, ८७-७-मुक्तानंदस्वामी; अहमदाबाद १८९४] २१६-१२
[ मिगचारियं चरिस्सामि ] एवं पुत्ता (पुत्तो) जहासुखं । [अम्मापिऊहिं अणुनाओ जहाइ उवहिं तओ] ॥ [उत्तराध्ययन १९-८५]११६-३१ [छो छो रे मुझ साहिब जगतनो ठो।] ए श्रीपाळनो रास करता ज्ञान अमृतरस वुढ्यो (वूठो) २ ॥ मुज० ॥ [ श्रीपालरास खंड १, पृ. १८५-विनयविजय-यशोविजय ]
४५३-३