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भीमद् राजचन्द्र परिशिष्ट (६) आत्मसिद्धिके पोंकी वर्णानुक्रमणिका
पद्यसख्या
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अथवा देहज आत्मा अथवा निजपरिणाम जे अथवा निश्चयनय आहे अथवा मतदर्शन षणां अथवा वस्तु क्षणिक छे अथवा सद्गुरुए कहां अथवा ज्ञान क्षणिकर्नु असद्गुरु ए विनयनो अहो! अहो! श्रीसद्गुरु आगळ शानी थई गया आत्मज्ञान त्यां मुनिपणुं आत्मशान समदर्शिता आत्मभ्रांतिसम रोग नहीं आत्मा छे ते नित्य छ मात्मादि अस्तित्वनां आत्मा द्रव्ये नित्य भास्माना अस्तित्वना आत्मानी शंका करे आत्मा सत् चैतन्यमय आत्मा सदा असंग ने आ देहादि आजथी भाव ज्यां एवी दशा ईश्वर सिद्ध यया विना उपजे ते सुविचारणा उपादाननुं नाम लई एक रांक ने एक रूप एक होय त्रण काळमां एज धर्मथी मोक्ष के ए पण जीव मतार्यमा एम विचारी अंतरे एवो मार्ग विनयतणो कयी जातिमां मोक्ष के का ईश्वर को नहीं कर्ता जीव न कर्मनो कर्ता भोक्ता कर्मनो का भोका जीव हो
यसंख्या
४६ कर्मभाव अशान छ १२२ कर्म अनंत प्रकारना २९ कर्मबंध क्रोधादियी ९३ कर्म मोहनीय भेद बे ६१ कषायनी उपशांतता १४ कषायनी उपशांतता ६९ केवळ निजस्वभावन २१ केवळ होत असंग जो १२४ कोई क्रियाजड थह रहा १३४ कोई संयोगोथी नहीं ३४ कोटि वर्षनु स्वम पण
१. क्यारे कोई वस्तुनो १२९ क्रोधादि तरतम्यता ४३ गच्छमतनी जे कल्पना १३ घटपट आदि जाण तुं ६८ चेतन जो निजभानमां ५९ छूटे देहाध्यास तो ५८ छे इन्द्रिय प्रत्येकने १.१ छोडी मत दर्शनतणो ७२ जड चेतननो भिन्न छ १२६ जडथी चेतन उपजे ४० जातिवेषनो भेद नहीं ८१ जीव कर्मकर्ता कहो ४२ जे जिनदेह प्रमाणने १३६ जे जे कारण बंधना ८४ जे द्रष्ट छ हशिनो ३६ जेना अनुभव वश्य ए ११६ जेम शुभाशुभ कर्मपद ३१ जे सद्गुरु उपदेशी ३७ जे संयोगो देखिये
२. जे स्वरूप समज्या विना . ९४ जो चेतन करतुं नयी
जो इच्छो परमार्थ तो
ज्यां ज्यां जे जे योग्य ११ ज्या प्रगटे सुविचारणा ८७ र सुधा समझ नहीं
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