Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 965
________________ संशोधन और परिवर्तन ८७३ - शुख कार्य जीव गौण वह तरहसे पदार्थ जैसे वर्तमानकालके पदार्थ है, वैसे दिखाई देते है आत्माकी मशुख पृपलाइन ४३४-१३ काय ४५३-२७ जाव ४५४-४ गाण ४५८-२६(१) + ४५८-२७(६), ४६१-१२ वह उस ४६२-२१ प्रमाणसे ४६३-२३ पदार्थ......में ४६३-२४ है, ४६५-१६ आत्माके ४६५-१६ आदिकी ४७४-४ करना ४९७-२७ जिस प्रकारसे......हो ४९९-२५ मैं अबला उन......करूँ ५००-८ वर्णकी ५०१-१८ दहुंच ५०८-१ आदिके ५१३-८ वचनको ५१५-८ वसाको ५२७-२६ करनेवाली २३२-२३ मंड ५४०-३४ तपगन्छवाले आदि होना जिस किसी प्रकारसे भी समझो, किन्तु अबला साधना कैसे कर सकती है वर्णका पहुंच आदिका वचनद्वारा वैसा कोई करनेवाले मंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक भी योग हो जाय ममत्व ऐसे जीव जैसे अंधा मार्ग बतावे ऐसा है। ज्योंही उसे खेद हुआ कि वह तुरत ही कमाने अन्त ५४७-१२ रोग ५५४-६ हो ५५७-२४ मारामारी ५५९-२० जीवा ऐसा ५६१-१ अंधमार्ग बताने जैसा, ५६१-१३ जिस तरह उसे खेद हो वह उस तरह ५६९-१ भटकने ५६९-१९ अन्तः ५७५-४५ ५८८-१४ थवा ५८८-३३ पाहल ५८९-१८ किसीसे १.-२३ फदळाता rv-१९ कारणानुयोग ६५७-६ करनेवाले ६.१-५ धर्मका अथवा पहिले कोई फळदाता करणानुयोग करानेवाले धर्ममें

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