Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 966
________________ श्रीमद् राजपा शस्त्रपरिक्षा करना बन पड़ता स्वभावभाव छूटना की रचना रचित की रचना रचित केवलीसे अतिरिक्त के लिये रोगीके रोगको वर्ष वेदांत पृष्ठ लाइन ६७६-३ शास्त्रपरिशा ६९०-७ करना ६९५-६ स्वभाव ७०५-१९ छुहाना ७०५-२४,२५ का विचार ७०५-२५ विचार किया हुआ ७०५-२७,२८ का विचार ७०६-१ विचार किये हुए ७१३-१९ इसके अतिरिक्त ७२७-२७ रोगीको ७२८-२९ दिन ७३६-२७ विदांत ७५३-१७ बताना ७५३-२१ वह ७५६-४ मूलका ७६.-२८ भावन ७७१-७ भेजा ७७१-८ और और ७७९-४ मुखके पास ले जाकर ७८०-१६ शास्त्रसंबंध ७८२-२ किसीकी ७८७-४ समाधानका ७८९-२० अंतवृत्ति ७९४-२० विषय ७९५-२३ शान ८००-७ सद्वत्तिवान् बताई उसका मूलकी भावन भेज और सबसे आगे करके शस्त्रसंबंध किसीको समाधान अंतर्वृत्ति विषम सवत्तिवान - SIATIS SO ASIA A " 8. LIERARY LIO LE-IV

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