Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 960
________________ श्रीमद् रामचन्द्र संशोधन और परिवर्तन मगुर पृष्ट लाइन ४-१४ पहले ८-५वीरं ८-८ धर्म विना राजा लोग ठगाये जाते हैं। ८-९धुरषता ९-४ प्रतिष्ठा ९-४ धर्मके बिना किसीभी वचनका ११-२८ महावीरकी १३-१६ निकाल २२-१८ प्रवेश मार्ग २३-२ चलाई २६-२५ स्वरूपकी २६-२५ विनाशका ३८-१३ व्यावस्था ५६-१जीवोंको क्षमाकर ६०-१२ इतनेमें ६७-२ इस बातकी......करना। आगे भाई यदि राजाके पास ठाटबाट न हो तो वह उस कमीके कारण ठगा नहीं जाता, किन्तु धर्मकी कमीके कारण वह ठगाया जाता है। धुरंधरता बुद्धिमत्ता सभीका कथन है के धर्मके बिना महावीरनी निकल मार्गमें प्रवेश उठाई स्वरूपको विनाश व्यवस्था जीवोसे क्षमा माँगकर इतने मुझे तो उसकी दया आती है । उसको परवस्तुमै मत जकड़ रक्खो । परवस्तुके छोड़नेके लिये यह सिद्धान्त भ्यानमें रक्खो कि उज्ज्वल भगवान्ने सम्मामि ७१-६ उज्ज्वलको ७२-१२.भगवान्में ७४-८ समाणेमि ७९-१० होने ८०-४ तत्पर्य ४-२१ उत्सत्ति व्ययरूपसे.......तो होते तात्पर्य ८५-१ नहीं, अर्थात् कभी ८५-२ जानकर ८५-२. जावग ९५-१४ पहले १.३-शरीरमें १०७-१कंकोंको ११५-२६ रोज ११९-४ मामकी उत्पत्ति व्ययरूपसे माने तो पाप पुण्य आदिका अभाव हो जानेसे नहीं हुआ, अंत: संभव है। जानकार जायेंगे उन शरीरमां रोश नामकी

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