Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra,
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
८५४
श्रीमद् राजचन्द्र
पृष्ठ लाइन हम परदेशी पंखी साधु, और देशके नाहिं रे। [
२६९-३ हिंसा रहिओ (ए) धम्मो (म्मे ) अठारस दोष (स ) विरहिओ (वजिए) देवो (वे)। निग्गंथे पवयणे सदहणे (णं) हो इ (ई) सम्मतं (तं)॥ [ षट्प्राभृतादिसंग्रह मोक्षप्रामृत ९०, पृ. ३६७] ।
६४६-७ [ नलिनीदलगतजलवत्तरलं तद्वज्जीवनमतिशयचपलम् ।] क्षणमपि सज्जनसंगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका ॥ [मोहमुद्गर ७-शंकराचार्य] २०३-४ क्षायोपशमिक असंख्य क्षायक एक अनन्य ( अनुन )। [ अध्यात्मगीता १-६ पृ. ४४ देवचन्दजी, अध्यात्मज्ञानप्रसारकमण्डल १९७५] ७६५-१६

Page Navigation
1 ... 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974