________________
भीमद् राजचन्द्र कामदेव श्रावक ( देखो प्रस्तुत ग्रंथ, मोक्षमाला पाठ २२). .. कार्तिकेयानुमेक्षा
___ यह अध्यात्मका प्रन्थ दिगम्बर विद्वान् स्वामी कार्तिकेय (कार्तिकस्वामी ) का बनाया हुआ है। ये कब हो गये हैं और कहांके रहनेवाले थे, इत्यादि बातोंका कुछ ठीक ठीक पता नहीं चलता । राजचन्द्रजी लिखते हैं-" गतवर्ष मद्रासकी ओर जाना हुआ था। कार्तिकस्वामी इस भूमिमें बहुत विचरे हैं । इस ओरके नग्न, भव्य, ऊँचे और अडोल वृत्तिसे खड़े हुए पहाड़ देखकर, स्वामी कार्तिकेय
आदिकी अडोल वैराग्यमय दिगम्बर वृत्ति याद आती है । नमस्कार हो उन कार्तिकेय आदिको।" कार्तिकेयानुप्रेक्षाके ऊपर कई टीका भी हैं। यह ग्रन्थ पं० जयचन्द्रजीकी वचनिकासहित बम्बईसे छपा है। पं. जयचन्द्रजीने दिगम्बर विद्वान् शुभचन्द्रजीकी संस्कृत टीकाके आधारसे यह वचनिका लिखी है । राजचन्द्रजीने कार्तिकेयानुप्रेक्षाके मनन-निदिध्यासन करनेका कई जगह उल्लेख किया है। किसनदास (सिंह) ( देखो क्रियाकोष ). कुण्डरीक ( देखो प्रस्तुत ग्रंथ, भावनाबोध पृ. ११८).
___ कुन्दकुन्द आचार्य दिगम्बर आम्नायमें बहुत मान्य विद्वान् हो गये हैं । कुन्दकुन्दका दूसरा नाम पद्मनन्दि भी था। इनके विषयमें तरह तरहकी दन्तकथायें प्रचलित हैं। इनके समयके विषयमें भी विद्वानोंमें मतभेद है । साधारणतः कुन्दकुन्दका समय ईसवी सन्की प्रथम शताब्दि माना जाता है । कुन्दकुन्द आचार्यके नामसे बहुतसे ग्रंथ प्रचलित हैं, परन्तु उनमें पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, Xसमयसार और अष्टपाहुड ये बहुत प्रसिद्ध हैं । इनमें आदिके तीन कुन्दकुन्दत्रयीके नामसे प्रसिद्ध हैं। तीनोंकी अमृतचन्द्राचार्यने संस्कृत टीका भी लिखी है। इन ग्रंथोंपर और भी विद्वानोंकी संस्कृत-हिन्दी टीकायें हैं। हिन्दी टीकाओंमें समयसारके ऊपर बनारसीदासजीका हिन्दी समयसारनाटक अत्यंत सुंदर है । इसे उन्होंने अमृतचन्दके समयसारकलशाके आधारसे हिन्दी कवितामें लिखा है। उक्त तीनों ही ग्रंथ अध्यात्मके उच्च कोटिके ग्रंथ माने जाते है। कुन्दकुन्दको ८४ पाहुड (प्रामृत ) का भी कर्ता माना जाता है। इनमें दर्शन, चारित्र, सूत्र, बोध, भाव, मोक्ष, लिंग और शील नामक आठ पाहुड छप चुके हैं। राजचन्द्रजीने प्रस्तुत ग्रंथमें एक स्थानपर सिद्धप्रामृतका उल्लेख किया है और उसकी एक गाथा उद्धृत की है। यह सिद्धप्रामृत उक्त आठपाहुड़से भिन्न है । यह पाहुन कुन्दकुन्दके अप्रसिद्ध पाहुबों से कोई पाहुए होना चाहिये । राजचन्द्रजीने कुन्दकुन्दके ग्रंथोंका खूब मर्मपान किया था। कुन्दकुन्द आदि आचार्योके प्रति कृतज्ञता प्रकाश करते हुए राजचन्द्रजी लिखते हैं-“हे कुन्दकुन्द आदि आचार्यो ! तुम्हारे वचन भी निजस्वरूपकी खोज करनेमें इस पामरको परम उपकारी हुए हैं, इसलिये मैं तुम्हें अतिशय भक्तिसे नमस्कार करता हूँ।" राजचन्द्रजीने पंचास्तिकायका भाषांतर भी किया है, जो अंक ७०. में दिया गया है। .. ... x मालम होता है कुन्दकुन्द आचार्य के समयसारके अतिरिक किसी अन्य विद्वान्ने भी समयसार नामक कोई प्रय बनाया है, जिसका विषय कुन्दकुन्दके समयसारसे मिन है । इस ग्रंथका राजचन्द्रजीने वाचन किया था । देखो पत्र ८४९।-लेखक.