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श्रीमद् राजचन्द्र प्रत्यक्ष दर्शन दिया करते थे, तथा संकटके समय स्वयं कृष्ण भगवान्ने इनकी हुंडी चुकाई थी। कहा जाता है कि नरसिंह मेहताने सब मिलाकर सवा लाख पद बनाये हैं । नरसी मेहता और कबीरकी निस्पृह भक्तिका राजचन्द्रजीने बहुत गुणगान किया है। नवतत्त्व
__ नवतत्त्वप्रकरणका श्वेताम्बर सम्प्रदायमें बहुत प्रचार है । इसमें चौदह गाथाओंमें नव तत्वोंके स्वरूपका प्रतिपादन किया है । नवतत्त्वके कर्ता देवगुप्ताचार्य हैं । इन्होंने संवत् १०७३ में नवतत्त्वप्रकरणकी रचना की है। नवतत्त्वप्रकरणके ऊपर अभयदेवसूरिने भाष्य लिखा है। इसपर और भी अनेक टीका टिप्पणियाँ हैं। नारदजी ( देखो नारदभक्तिसूत्र ). नारद ( देखो प्रस्तुत ग्रंथ, मोक्षमाला पाठ २३ ). नारदभक्तिसूत्र
नारदभक्तिसूत्र महर्षि नारदजीकी रचना है । इस प्रथमें ८१ सूत्र हैं । ग्रंथकारने इसमें भक्तिकी सर्वोत्कृष्टताका प्रतिपादन किया है, और उसके लिये कुमार, वेदव्यास, शुकदेव आदि भक्ति-आचार्योंकी साक्षी दी है। ग्रंथकारने बताया है कि भक्तोंमें जाति कुल आदिका कोई भेद नहीं होता, और भक्ति गूंगेकी स्वादकी तरह अनिर्वचनीय होती है । इसमें व्रजगोपियोंकी भक्तिकी प्रशंसा की गई है । भक्त लोग षड्दर्शनोंकी तरह भक्तिको सातवा दर्शन मानते हैं । उक्त पुस्तक हनुमानप्रसाद पोदारके विवेचनसहित गीता प्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुई है । नारदजीने नारदगीता नारदस्मृति आदि अन्य भी ग्रंथ लिखे हैं। *निष्कुलानन्द
निष्कुलानन्दजी स्वामीनारायण सम्प्रदायक साधु थे । इनके गुजराती भाषामें बहुतसे काव्य हैं । ये काठियावाड़में रहते थे, और सं० १८७७ में मौजूद थे। निष्कुलानन्दजीके पूर्व आश्रमका नाम लालजी था । इनकी कविताका मुख्य अंग वैराग्य है । इन्होंने भक्तचिन्तामणि, उपदेशचिंतामाण, धीरजाख्यान, निष्कुलानन्द काव्य तथा अन्य अनेक पदोंकी रचना की है। राजचन्द्रजीने निष्कुलानन्दके धीरजाख्यानमें से पद उद्धृत किये हैं। नीरांत
नीरांत भक्त जातिसे पाटीदार थे । इनका मरण सन् १८४३ में बहुत वृद्धावस्थामें हुआ था। इनकी कविता वेदान्तज्ञान और कृष्णभक्तिके ऊपर है । ये तुलसी लेकर हर पूर्णिमाको डाकोर जाया करते थे । कहते हैं एक बार इन्हें रास्तेमें कोई मुसलमान मिला, और उसने कहा कि 'ईश्वर तो तेरे नजदीक है, तू हाथमें तुलसी लेकर उसे क्या ढूँढता फिरता है।' इसपर नीरांतको ज्ञान उत्पन्न हुआ, और उन्होंने मुसलमान गुरुको प्रणाम किया। उसके बाद उनका वेदांतकी ओर अधिक झुकाव हुआ, और उनका आत्मज्ञान उत्तरोत्तर बढ़ता गया। राजचन्द्रजीने इनको योगी (परम योग्यतावाला) कहा है।